तोरई की खेती (torai ki kheti) | तोरई की उन्नत किस्में – किसान कमा सकते है लाखों का मुनाफा:, जानेतोरई को तुरई और तोरी के नाम से भी जाना जाता है, इसे भारत के कुछ राज्यों में “झिंग्गी” या “झींगा” भी कहा जाता है। एक वर्षा ऋतु की प्रमुख सब्जी है, जो फाइबर और विटामिन से भरपूर होती है।
इसके पत्ते मध्यम आकार के और हल्के हरे रंग के होते हैं। तोरई लम्बी, पतली और कोमल होती है, जिसका अंदरूनी हिस्सा और बीज हल्के क्रीमी रंग के होते हैं। यह स्वाभाविक रूप से कम कैलोरी वाली सब्जी है।
तुरई का अंग्रेजी नाम ज़ुकीनी है, और इसकी तासीर ठंडी होती है। इसमें आयरन, प्रोटीन, और कैल्शियम जैसे कई पोषक तत्व होते हैं। इसके अलावा, इसमें कई बायोएक्टिव कॉम्पोनेंट भी पाए जाते हैं। तुरई की त्वचा उभरी हुई होती है और इसका आकार लंबा और बेलनाकार होता है।
मुख्य रूप से नगदी फसल के रूप में उगाई जाने वाली तुरई पर पीले रंग के फूल आते हैं, जिनसे यह फल बनता है। इस फल का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है।
तोरई की खेती का उचित समय
तोरई की खेती मुख्य रूप से किसान जून से जुलाई के महीने में करते हैं। इसकी फसल को पूरी तरह पकने में 80 से 90 दिनों का समय लगता है। चूंकि तुरई की खेती अधिकतर वर्षा ऋतु में की जाती है, इसलिए खेत में नमी बनाए रखना इसकी अच्छी उपज के लिए आवश्यक होता है।
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तुरई की उन्नत किस्में (torai ki unnat kismen)
तुरई की कई उन्नत किस्में हैं जिनका उत्पादन करके किसान अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। प्रत्येक किस्म का पकने का समय अलग-अलग होता है। कुछ प्रमुख उन्नत किस्में इस प्रकार हैं: को-1 (Co-1), पीकेएम-1 (PKM-1), घीया तोरई, पूसा नसदार, पूसा चिकनी, पंजाब सदाबहार, और सरपुतिया। इन किस्मों के चयन से किसान बेहतर उत्पादन और लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
तुरई की खेती के लिए सही जलवायु और मिट्टी का चयन
तुरई की खेती लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन अच्छी जल निकासी वाली भूमि इसके लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। हालांकि, उच्च पैदावार के लिए दोमट मिट्टी को आदर्श माना जाता है। इसके अलावा, नदियों के किनारे पाई जाने वाली हल्की अम्लीय मिट्टी में भी इसका सफल उत्पादन किया जा सकता है।
तुरई के विकास के लिए आद्र और शुष्क जलवायु की जरूरत होती है। भारत में इसकी खेती खरीफ और जायद सीजन के दौरान होती है। पौधों के शुरुआती चरण में पर्याप्त वर्षा आवश्यक होती है, लेकिन अत्यधिक बारिश फसल को नुकसान पहुंचा सकती है। अंकुरण के लिए सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है, और तुरई का पौधा अधिकतम 35°C तक का तापमान सहन कर सकता है।
तुरई की खेती में खाद और उर्वरक का उपयोग
तुरई की बेहतर पैदावार के लिए किसान जैविक खाद, जैसे गोबर की खाद, का उपयोग कर सकते हैं। जुताई से 15-20 दिन पहले खेत में लगभग 200-250 क्विंटल खाद डालना फायदेमंद होता है। अंतिम जुताई के समय इस खाद को मिट्टी में अच्छी तरह से मिलाना चाहिए।
इसके अलावा, उच्च उत्पादन के लिए पोटाश (80 किलोग्राम), फास्फोरस (100 किलोग्राम) और नाइट्रोजन (120 किलोग्राम) जैसे उर्वरकों का उपयोग भी किया जा सकता है। इन उर्वरकों की आधी मात्रा बुवाई के समय और शेष मात्रा बुवाई के एक महीने बाद दी जा सकती है।*
तोरई की खेती की बुवाई के लिए बीज की मात्रा और बीज उपचार
तुरई की बुवाई से पहले खेत की अच्छी तरह जुताई करें। जब मिट्टी भुरभुरी हो जाए, तब बुवाई की प्रक्रिया शुरू करें। प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में 3 से 5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
ग्रीष्मकाल में बुवाई के लिए जनवरी से मार्च का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है, जबकि खरीफ सीजन में बुवाई के लिए जून से जुलाई का महीना आदर्श होता है। बुवाई से पहले बीज उपचार करना आवश्यक है ताकि फसल रोगमुक्त रहे।
बीज उपचार के लिए प्रति किलोग्राम बीज में 3 ग्राम थीरम मिलाकर अच्छे से उपचारित करें। इससे तुरई की फसल को फफूंदी जैसी बीमारियों से बचाया जा सकता है।
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तोरई की खेती कैसे करें सिंचाई प्रबंधन ?
वर्षा ऋतु में तुरई की फसल को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि बारिश समय-समय पर मिट्टी में नमी बनाए रखती है। हालांकि, गर्मियों में फसल को नियमित रूप से पानी देने की आवश्यकता होती है। इसलिए, गर्मी के मौसम में हर 6-7 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें ताकि मिट्टी सूखने से फसल पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।
तुरई की फसल में खरपतवार, कीट, और रोगों का प्रकोप भी देखा जा सकता है। इन समस्याओं को नियंत्रित करने के लिए किसान फसल चक्र अपनाने के साथ-साथ निराई-गुड़ाई भी कर सकते हैं। साथ ही, कीटनाशक दवाओं का भी उचित उपयोग करके फसल को सुरक्षित रखा जा सकता है।
निष्कर्ष
तोरई की खेती से किसान न केवल बेहतर पैदावार प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि उन्नत किस्मों का चयन करके वे अधिक मुनाफा भी कमा सकते हैं। सही जलवायु, मिट्टी, और उर्वरकों के उपयोग के साथ-साथ सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण का समुचित प्रबंधन इस फसल की सफलता की कुंजी है। इसके अलावा, समय पर बीज उपचार और फसल चक्र अपनाने से तुरई की फसल को रोग और कीटों से बचाया जा सकता है।
इस प्रकार, तोरई की खेती किसानों के लिए एक लाभकारी विकल्प साबित हो सकती है, जो उन्हें लाखों का मुनाफा दिला सकती है। मुनाफे वाली फसलों और खेती की और अधिक जानकारी के भारत के किसान ब्लॉग पर आते रहिये|।