मक्का की खेती को प्रभावित करने वाला रोग और इसकी रोकथाम के उपाय: मक्का की खेती (Makka ki kheti) भारत में खरीफ के मौसम के दौरान बड़े पैमाने पर की जाती है। मक्का को विश्वभर में इसकी उच्च आनुवंशिक उपज क्षमता के कारण “अनाज की रानी” कहा जाता है। मक्का की बुवाई का समय क्षेत्रीय जलवायु और मौसम पर निर्भर करता है। खरीफ के लिए जून-जुलाई और रबी के लिए अक्टूबर-नवंबर आदर्श समय माने जाते हैं।
मिलेट्स, जिन्हें मोटा अनाज भी कहा जाता है, को ‘श्री अन्न’ के नाम से भी जाना जाता है। मिलेट्स की पैदावार को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2023 को ‘मिलेट्स ईयर’ के रूप में मनाया था।
जब भी मोटे अनाज, यानी मिलेट्स, की बात होती है, मक्का का ज़िक्र स्वाभाविक रूप से सामने आता है। वर्तमान में रबी सीजन की कटाई लगभग पूरी हो चुकी है, और किसान जल्द ही खरीफ फसलों की बुवाई की तैयारी में जुटने लगेंगे।
जिन किसानों की फसल कट चुकी है, उनमें से अधिकांश अब मक्का की खेती की तैयारी कर रहे हैं।
हम आपके लिए मक्का की खेती में नुकसान पहुँचाने वाले झुलसा रोग और उसके नियंत्रण के महत्वपूर्ण उपाय साझा करेंगे, ताकि आप बेहतर उपज प्राप्त कर सकें।
अगर आप मक्के की खेती से अधिक लाभ प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमारे ब्लॉग “मक्का की खेती: उन्नत बुवाई विधियों से अधिक उपज और मुनाफा” पढ़ें, जहां आपको बेहतर उपज के लिए नवीनतम तकनीकों और रणनीतियों की जानकारी मिलेगी।
मक्का की खेती में झुलसा रोग
मक्के की फसल में उत्तरी झुलसा रोग का खतरा हमेशा बना रहता है, जिसे अंग्रेजी और वैज्ञानिक भाषा में ‘टर्सिकम लीफ ब्लाइट रोग’ (Tursicum Leaf Blight Disease) के नाम से जाना जाता है।
यह झुलसा रोग इतना हानिकारक है कि यदि फसल पर लग जाए, तो पूरी फसल को नष्ट करने की क्षमता रखता है।
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में बड़ी संख्या में किसान मक्के की खेती करते हैं, लेकिन मक्का फसल पर विशेष रूप से उत्तरी झुलसा जैसे कवक रोगों का प्रकोप अधिक होता है, जिससे फसल को भारी नुकसान हो सकता है।
झुलसा रोग के क्या लक्षण हैं ?
ध्यान देने वाली बात है कि उत्तरी झुलसा रोग का संक्रमण 10 से 15 दिनों के भीतर दिखाई देने लगता है। इस दौरान फसल की पत्तियों पर छोटे-छोटे हल्के हरे धब्बे दिखने लगते हैं।
साथ ही, पत्तियों पर शिकार के आकार के एक से छह इंच लंबे भूरे रंग के घाव बन जाते हैं, जिससे पत्तियां झड़ने लगती हैं। इस रोग से फसल की उपज को काफी नुकसान होता है।
मक्का की खेती में झुलसा रोग से बचाव
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, फसल की बुवाई से पहले पुराने अवशेषों को हटाना चाहिए, जिससे इस रोग के फैलने की संभावना कम हो जाती है।
साथ ही, खेतों में पोटैशियम का उपयोग पोटैशियम क्लोराइड के रूप में करना चाहिए। इसके अलावा, मैंकोजेब 0.25 प्रतिशत और कार्बेंडाजिम का छिड़काव करने से फसल को इस हानिकारक रोग से बचाया जा सकता है।
निष्कर्ष | Conclusion
मक्का की खेती में झुलसा रोग और अन्य बीमारियों से बचाव के लिए उचित प्रबंधन और निगरानी आवश्यक है। झुलसा रोग, विशेष रूप से उत्तरी झुलसा रोग (Tursicum Leaf Blight), मक्के की उपज पर भारी असर डाल सकता है, जिससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादन घट सकता है। इस रोग की पहचान समय पर कर लेने और आवश्यक निवारक उपाय अपनाने से किसानों को अपनी फसल की रक्षा करने में मदद मिलती है।
रोग के नियंत्रण के लिए खेत से पुराने फसल अवशेषों को हटाना, उचित जल निकासी का प्रबंधन करना, और पोटैशियम जैसे आवश्यक पोषक तत्वों का प्रयोग महत्वपूर्ण है। साथ ही, समय-समय पर मैंकोजेब और कार्बेंडाजिम का छिड़काव करने से फसल को झुलसा रोग से बचाया जा सकता है।
संक्षेप में, मक्के की सफल खेती के लिए न केवल सही समय पर बुवाई और पोषण का ध्यान रखना जरूरी है, बल्कि रोगों से बचाव के लिए नियमित निरीक्षण और प्रबंधन भी महत्वपूर्ण है।
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1. मक्का में कौन-कौन से रोग होते हैं?
पर्ण रोग आयोवा में मकई के सबसे आम पर्ण रोगों में एन्थ्रेक्नोज लीफ ब्लाइट, ग्रे लीफ स्पॉट, उत्तरी लीफ ब्लाइट, सामान्य और दक्षिणी जंग और आईस्पॉट शामिल हैं। जंग के अलावा, जो हर बढ़ते मौसम में दक्षिण से हवा के साथ आते हैं, इन रोगों का कारण बनने वाले कवक मिट्टी की सतह पर छोड़े गए संक्रमित मकई के अवशेषों में जीवित रहते हैं।
2. मक्का में कीटनाशक कौन सा डालें?
मक्का की फसल में आर्मीवर्म नष्ट करने के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी @ 4 ग्राम या क्लोरेंट्रानिलिप्रोएल 18.5% एससी @ 3 मिली प्रति 10 लीटर पानी की दर से पत्ती के पौधों पर स्प्रे करें। अधिक उपज देने वाला हाइब्रिड मक्का बीज! अधिक उपज देने वाला हाइब्रिड मक्का बीज! मक्का की फसल में आनेवाले हर खरपतवार पर असरदार!