कृषि समाचार: खीरा न केवल एक ताज़गी भरा फल है, बल्कि इसमें कई स्वास्थ्य लाभ भी छिपे हैं। विशेषज्ञ अक्सर खीरे को सलाद के रूप में खाने की सलाह देते हैं, क्योंकि यह गर्मियों में शरीर को ठंडा और हाइड्रेट रखने में मदद करता है। इसके अलावा, खीरे में मौजूद फाइबर और पानी की मात्रा इसे वजन कम करने के लिए एक उत्कृष्ट विकल्प बनाती है। नियमित रूप से खीरे का सेवन करने से त्वचा में निखार और पाचन स्वास्थ्य में सुधार भी होता है।
अगर आप सब्जी की खेती में निवेश करने का विचार कर रहे हैं और अधिक मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो महाराष्ट्र में औरंगाबाद के विशेषज्ञ किसान सलाहकार की मानें, खीरे की खेती (Cucumber Farming) एक बेहतरीन विकल्प है। खीरे की मांग न केवल हर मौसम में होती है, बल्कि यह हर प्रकार के आयोजनों में भी आवश्यक रहता है। औरंगाबाद के बारुण गांव के किसान राजेश महतो ने साझा किया कि उन्होंने पहले टमाटर और मटर की खेती की, लेकिन उन्हें अपेक्षित मुनाफा नहीं मिला। घरवालों के सुझाव पर राजेश ने खीरे की खेती करने का निर्णय लिया। प्रारंभ में उन्हें भी संदेह था कि खीरे की मार्केट में बहुत मांग नहीं होगी, लेकिन जब फसल तैयार हुई, तो उन्हें बाजार में बेहतरीन कीमत मिली और उन्हें उम्मीद से कहीं ज्यादा मुनाफा हुआ।
10 एकड़ में खीरा की सफल खेती
राजेश महतो ने बताया कि पिछले चार वर्षों से वे निरंतर खीरे की खेती कर रहे हैं। खीरे की खेती के लिए सबसे पहले मेड़ तैयार की जाती है, जिसके बाद पौधों को सहारा देने के लिए लकड़ी की सहायता ली जाती है, ताकि खीरे का पौधा अच्छी तरह से बढ़ सके। राजेश महतो का कहना है कि खीरे की बुवाई का सही समय फरवरी से मार्च के बीच होता है, और फसल लगभग 30 से 40 दिनों में तैयार हो जाती है। एक एकड़ में करीब 10 क्विंटल खीरा उत्पादन होता है, और प्रमोद सालाना 8 लाख रुपए तक का मुनाफा कमाते हैं।
खीरे की खेती का महत्व
खीरे की खेती महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में बड़े पैमाने पर की जाती है, जहां इसकी उपयुक्त जलवायु और मिट्टी फसल की गुणवत्ता को बढ़ाती हैं। आजकल जयपुर के चोमू, सीकर, हरयाणा, उत्तरप्रदेश और पंजाब में भी खीरे की खेती बहुतायत में की जा रही है | खीरे के लिए bade स्तर पर हाइड्रोपोनिक फार्म्स बनाए जा रहे हैं | इस फसल की खेती सिर्फ महारास्थ्र की हि बात करें तो राज्य में लगभग 3711 हेक्टेयर भूमि पर की जाती है | ककड़ी और खीरे की खेती से किसान पूरे साल अच्छा मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं। खीरे की निरंतर मांग और इसके स्वास्थ्य लाभों के कारण, यह एक लाभकारी फसल साबित होती है, जो किसानों के लिए आर्थिक स्थिरता का स्रोत बनती है।
‘खीरा’ कई स्वास्थ्य लाभों का खजाना
खीरा न केवल ताजगी का स्रोत है, बल्कि यह कई बीमारियों के नियंत्रण में भी सहायक होता है। चिकित्सक अक्सर इसे सलाद के रूप में खाने की सलाह देते हैं, खासकर गर्मियों में, क्योंकि यह शरीर को हाइड्रेट रखने में मदद करता है। इसके कम कैलोरी वाले गुण वजन कम करने में भी फायदेमंद हैं। खीरा आपके शरीर और त्वचा के लिए बेहद लाभकारी होता है, क्योंकि इसमें एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो त्वचा को स्वस्थ और निखारदार बनाए रखने में मदद करते हैं।
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खीरे की खेती के लिए महत्वपूर्ण बातें:
- मिट्टी का चयन: खीरे की खेती के लिए अच्छी जल निकास वाली बलुई या दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है।
- खीरे की खेती के लिए भूमि तैयारी: खीरा बुवाई से पहले खेत की मिट्टी को हल से या फिर वीडर से अच्छी तरह 2-3 बार जोतें ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए।
- समतलीकरण: खेत को समतल करने के बाद ही बुवाई करें।
- बुवाई की दूरी: कतार से कतार 5 फुट और दो पौधों के बीच 2.5 फुट की दूरी रखनी चाहिए।
- खीरे के बीज की गहराई: बीज को 1 सेंटीमीटर की गहराई में बोएं।
- खीरा बुवाई का समय: खीरे की बुवाई फरवरी-मार्च में की जाती है, जबकि खरीफ सीजन में यह जून-जुलाई में की जाती है।
- बीज की मात्रा: एक एकड़ में केवल 200 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
- सिंचाई की आवश्यकता: खीरे की खेती में नियमित सिंचाई की जरूरत होती है, विशेषकर शुष्क मौसम में हर 4-5 दिन में सिंचाई करें। बरसात के मौसम में इसकी जरूरत नहीं होती।
- खरपतवार नियंत्रण: खीरे की खेती में खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई करना आवश्यक है।
खीरे की उन्नतशील किस्में
भारत में अलग अलग राज्यों और मिटटी की उर्वरकता के आधार पर खीरे की खेती (Cucumber Farming) के लिए कई उन्नतशील किस्में उपलब्ध हैं, जो उत्पादन और गुणवत्ता में सुधार लाने में मदद करती हैं। इनमें प्रमुख हैं:
- पूसा संयोग: एक हाइब्रिड किस्म, जो 50 दिन में तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 200 क्विंटल तक पैदावार देती है।
- पूसा बरखा: खासकर खरीफ के मौसम के लिए उपयुक्त, इसकी औसत पैदावार 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
- स्वर्ण पूर्णिमा
- पूसा उदय
- पूना खीरा
- स्वर्ण अगेती
- पंजाब सलेक्शन
- खीरा 90
- कल्यानपुर हरा खीरा
- खीरा 75
- पीसीयूएच–1
- स्वर्ण शीतल: यह चूर्णी फफूंदी और श्याम वर्ण रोग के प्रति प्रतिरोधी किस्म है।
इन किस्मों का चयन करके किसान अपनी पैदावार और मुनाफा बढ़ा सकते हैं।
इन सभी बातों का ध्यान रखते हुए, आप खीरे की खेती में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। मुनाफे वाली फसलों और खेती की और अधिक जानकारी के भारत के किसान ब्लॉग पर आते रहिये|