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सहजन की खेती | Sahjan ki khet

सहजन की खेती कैसे करे? | सहजन की खेती के आर्थिक लाभ

सहजन की खेती कैसे करे: सहजन, जिसे मोरिंगा (Moringa oleifera) के नाम से भी जाना जाता है, एक तेजी से बढ़ने वाला और पोषण से भरपूर पेड़ है। यह अपनी अनुकूलता के कारण विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में आसानी से उगाया जा सकता है, चाहे वह गर्मी हो, ठंड हो, या सूखा। अपने औषधीय गुणों और पोषक तत्वों की प्रचुरता के कारण, सहजन विश्वभर में लोकप्रियता प्राप्त कर रहा है और इसे “सुपरफूड” के रूप में भी जाना जाता है।

इसके अलावा, Sahjan ki kheti से किसानों को आर्थिक लाभ भी हो सकता है क्योंकि यह न्यूनतम पानी और देखभाल में भी अच्छी पैदावार देता है। सहजन की खेती का विस्तार करने से पर्यावरण को भी फायदा हो सकता है, क्योंकि यह मिट्टी के क्षरण को रोकने और मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने में मदद करता है।

सहजन के पोषक एवं औषधीय गुण

सहजन के पत्ते, फलियां, बीज, और जड़ें सभी स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होते हैं। इसके पत्तों में प्रोटीन, विटामिन, और खनिजों की प्रचुर मात्रा होती है, जो इसे पोषण की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण बनाते हैं। सहजन की फलियां प्रोटीन का अच्छा स्रोत होती हैं और इसका उपयोग विभिन्न खाद्य पदार्थों में किया जा सकता है।

इसके बीजों का उपयोग तेल निकालने और जल शुद्धिकरण के लिए किया जाता है, जबकि जड़ों में औषधीय गुण होते हैं जो कई स्वास्थ्य समस्याओं के उपचार में सहायक होते हैं।

सहजन की खेती (Sahjan ki kheti) में जलवायु और मिट्टी

Sahjan ki kheti के लिए अनुकूल जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएं इस प्रकार हैं:

  • तापमान: 25-35 डिग्री सेल्सियस के बीच का तापमान सहजन के विकास के लिए आदर्श है, जो इसके तीव्र और स्वस्थ विकास में सहायक होता है।
  • वर्षा: सालाना 250-3000 मि.मी. वर्षा इसकी खेती के लिए पर्याप्त मानी जाती है। हालांकि, यह सूखे और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में भी आसानी से उगाया जा सकता है।
  • मिट्टी: सहजन विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में उग सकता है, लेकिन अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। इसके लिए मिट्टी का पीएच स्तर 6.5-7.5 के बीच होना चाहिए ताकि पौधों को बेहतर पोषण मिल सके।

इसके अलावा, अत्यधिक जलभराव से बचने के लिए खेत में उचित जल निकासी व्यवस्था भी होनी चाहिए, ताकि पौधे की जड़ें सड़ने से बच सकें।

बीज और रोपण

सहजन की सफल खेती के लिए उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का चयन और सही रोपण तकनीक बेहद जरूरी है। इसके लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान दें:

  1. बीज चयन: ताजे, स्वस्थ और प्रमाणित बीजों का ही चयन करें ताकि पौधों की गुणवत्ता और उत्पादन बेहतर हो।
  2. रोपण का समय: मानसून की शुरुआत यानी जून-जुलाई का समय रोपण के लिए सबसे उपयुक्त है, जिससे पौधे को पर्याप्त नमी मिलती है।
  3. रोपण की विधि: सहजन की खेती बीजों और कलमों दोनों तरीकों से की जा सकती है। बीजों को सीधे खेत में बोया जा सकता है या पहले नर्सरी में उगाकर बाद में खेत में स्थानांतरित किया जा सकता है।
  4. बीज दर: प्रति हेक्टेयर 500-1000 ग्राम बीज का उपयोग पर्याप्त होता है, जो खेत की उपज क्षमता पर निर्भर करता है।
  5. रोपण की गहराई: बीजों को 2-3 से.मी. गहराई पर बोना चाहिए ताकि वे सही मात्रा में मिट्टी से ढके रहें और अंकुरण अच्छे से हो सके।

इसके अलावा, उचित अंतराल पर पौधों की दूरी का ध्यान रखना और समय-समय पर खेत की निराई-गुड़ाई भी फसल की गुणवत्ता में सुधार लाने में सहायक होती है।

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सहजन की खेती के लिए खेत की तैयारी

सहजन की खेती के लिए खेत की तैयारी के निम्नलिखित चरण हैं:

  1. खेत की जुताई: मिट्टी को अच्छी तरह से जोतें ताकि वह भुरभुरी और हवादार हो जाए, जिससे जड़ें आसानी से फैल सकें।
  2. क्यारियां बनाना: खेत को समतल करके क्यारियां बनाएं, ताकि जल निकासी सुचारू रूप से हो सके और पानी का ठहराव न हो।
  3. खाद और उर्वरक का उपयोग: खेत में जैविक खाद जैसे गोबर की खाद या कम्पोस्ट डालें। इसके साथ ही, संतुलित मात्रा में रासायनिक उर्वरक NPK (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, और पोटैशियम) का भी उपयोग करें, ताकि पौधों को आवश्यक पोषक तत्व मिल सकें।

अच्छी खेत तैयारी से पौधों की वृद्धि में सुधार होता है और फसल उत्पादन की गुणवत्ता बढ़ती है।

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सहजन की खेती | Sahjan ki khet

रोग और कीट प्रबंधन

सहजन की फसल पर विभिन्न रोग और कीटों का हमला हो सकता है। इनसे बचाव के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं:

  • फफूंद रोग: बीज उपचार और फसल की नियमित जांच करें। रोग के लक्षण दिखाई देने पर उपयुक्त फफूंदनाशक का उपयोग करें।
  • कीट: एफिड, जैसिड, और अन्य कीटों के लिए नीम का तेल या अन्य जैविक कीटनाशकों का उपयोग करें।
  • नियमित निरीक्षण: फसल की नियमित जांच करें और किसी भी रोग या कीट के लक्षण दिखाई देने पर तुरंत उपचार करें।

सहजन की फसल की कटाई और संग्रहण

कटाई: जब फलियां हरी और मांसल हो जाएं, तो उनकी कटाई करनी चाहिए। पत्तियों को भी जरूरत के अनुसार काट सकते हैं।

सुखाना: कटाई के बाद फसल को अच्छी तरह सुखाएं ताकि उसकी नमी कम हो सके।

संग्रहण: सुखाई गई फसल को सूखे और हवादार स्थान पर रखें, और इसे बोरियों में भरकर सुरक्षित रूप से भंडारित करें।

सहजन की खेती के आर्थिक लाभ

सहजन की खेती किसानों के लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद साबित हो सकती है, क्योंकि इसमें कम लागत के साथ अधिक उत्पादन और अच्छा बाजार मूल्य मिलता है।

सहजन के पत्ते, फलियां, बीज, और जड़ें, अपने पोषण और औषधीय गुणों के कारण बढ़ती मांग में हैं, जो इसे किसानों के लिए एक लाभकारी और टिकाऊ विकल्प बनाते हैं।

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निष्कर्ष

सहजन की खेती, जिसे मोरिंगा के नाम से भी जाना जाता है, न केवल पोषण से भरपूर है, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी किसानों के लिए अत्यधिक लाभकारी साबित हो सकती है। इसकी खेती विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में आसानी से की जा सकती है और यह कम लागत में बेहतर उत्पादन देने में सक्षम है। इसके औषधीय गुण और पोषक तत्व इसे ‘सुपरफूड’ की श्रेणी में शामिल करते हैं, जिससे इसकी बाजार में मांग तेजी से बढ़ रही है।

सहजन के पत्ते, फलियां, बीज, और जड़ें सभी पोषण और स्वास्थ्य लाभ प्रदान करने में सक्षम हैं। इसके फायदों को देखते हुए किसान इसे एक लाभकारी फसल के रूप में अपना सकते हैं। सही तकनीकों और उचित फसल प्रबंधन के साथ, सहजन की खेती से पर्यावरण संरक्षण और किसानों की आर्थिक समृद्धि, दोनों में योगदान हो सकता है।

इसलिए, सहजन की खेती को बढ़ावा देकर न केवल कृषि को प्रोत्साहन मिल सकता है, बल्कि समाज को स्वास्थ्यवर्धक विकल्प भी प्रदान किए जा सकते हैं।

लगातार पूछे जानें वाले प्रश्न

1. सहजन का पेड़ कितने दिन में फल देता है?

पौधे लगाने के लगभग 160-170 दिनों में फल तैयार हो जाता है।

2. सहजन को हिंदी में क्या कहते हैं?

सहजन (वानस्पतिक नाम : मोरिंगा ओलिफेरा, Moringa oleifera) एक बहु उपयोगी पेड़ है। इसे हिन्दी में सहजना, सुजना, सेंजन और मुनगा आदि नामों से भी जाना जाता है। अंग्रेजी में इसे, “ड्रमस्टिक ट्री” भी कहते हैं।

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