कुटकी की खेती Panicum Sumatrense
कुटकी की खेती

कुटकी की खेती (Panicum Sumatrense): बुवाई, कटाई, और इसके अद्भुत पोषक तत्वों के लाभ

कुटकी की खेती (Panicum Sumatrense): बुवाई, कटाई, कुटकी की खेती कैसे करें और इसके अद्भुत पोषक तत्वों के लाभ: कुटकी की खेती एक महत्वपूर्ण धान्य फसल है, जिसे वैज्ञानिक नाम Panicum Sumatrense से जाना जाता है। इसे खासकर शुष्क और पहाड़ी क्षेत्रों में उगाया जाता है। कुटकी का पौधा छोटे आकार का होता है और इसकी खेती कम पानी में भी सफलतापूर्वक की जा सकती है। 

इसकी बुवाई जून से जुलाई के बीच की जाती है और 3-4 महीने में फसल तैयार हो जाती है। कुटकी के दाने छोटे होते हैं, जिनमें भरपूर मात्रा में पोषक तत्व होते हैं, जैसे कि प्रोटीन, फाइबर, आयरन, और कैल्शियम। यह स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद है, खासकर पाचन तंत्र और हड्डियों के लिए।

भारत में कुटकी की खेती मुख्य रूप से मध्य प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में की जाती है, जबकि छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश में भी इसका उत्पादन होता है। यह हर आयु वर्ग के लिए फायदेमंद है, खासकर कब्ज़ से राहत दिलाने और पेट की समस्याओं को दूर करने में सहायक है।

कुटकी के पोषक तत्व शरीर के कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने की क्षमता रखते हैं, बच्चों की वृद्धि में सहायक होते हैं और शरीर को मजबूत बनाते हैं। इसका जटिल कार्बोहाइड्रेट धीरे-धीरे पचता है, जो मधुमेह रोगियों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है।

प्रति 100 ग्राम कुटकी अनाज में 8.7 ग्राम प्रोटीन, 75 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 5.3 ग्राम वसा, और 9.3 मिलीग्राम आयरन पाया जाता है। उच्च फाइबर सामग्री होने के कारण यह वसा के जमाव को कम करने में मदद करता है। इसके न्यूट्रास्युटिकल तत्वों में फिनोल, टैनिन, और फाइटेट्स शामिल होते हैं।

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कुटकी की खेती के लिए जलवायु

भारत में कुटकी की खेती बड़े पैमाने पर नहीं होती। यह फसल सूखे और पानी दोनों की परिस्थिति में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है, और 2000 मीटर तक की ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में भी उगाई जा सकती है। यह फसल 10 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान सहन नहीं कर पाती और गर्मी के मौसम में उगाई जाती है।

कुटकी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

कुटकी को विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में उगाया जा सकता है, जैसे रेतीली दोमट या काली कपास मिट्टी। हालांकि, बेहतर उत्पादन के लिए उपजाऊ और कार्बनिक पदार्थों से भरपूर दोमट मिट्टी को प्राथमिकता दी जाती है। यह फसल लवणीय और क्षारीय मिट्टी में भी अच्छी तरह से विकसित हो सकती है, जिससे इसे कई प्रकार की मिट्टी में उगाने की क्षमता मिलती है।

कुटकी बुवाई का सही समय और तरीका

कुटकी की खेती Panicum Sumatrense
कुटकी की खेती

खरीफ मौसम में कुटकी की बुवाई जुलाई के पहले पखवाड़े में की जाती है, जो वर्षा पर निर्भर होती है। रबी सीजन में तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में इसकी बुवाई सितंबर-अक्टूबर के बीच होती है, जबकि गर्मियों में बिहार और उत्तर प्रदेश में बुवाई का समय मई माह होता है।

बुवाई के समय पंक्तियों के बीच की दूरी 25-30 सेमी रखी जाती है, और बीजों को 2-3 सेमी गहराई पर बोया जाता है। पंक्ति बुवाई के लिए 4-5 किलो बीज प्रति एकड़ और प्रसारण विधि से बुवाई के लिए 8-10 किलो बीज प्रति एकड़ की मात्रा का उपयोग किया जाता है।

कुटकी की फसल में खाद और उर्वरक प्रबंधन

खाद और उर्वरक प्रबंधन के तहत प्रति एकड़ 4-5 टन कंपोस्ट या सड़ी हुई गोबर की खाद का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, फसल के लिए 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 12 किलोग्राम फॉस्फोरस और 8 किलोग्राम पोटाश का भी प्रयोग किया जाता है। बुवाई के समय आधी नाइट्रोजन डालनी चाहिए, जबकि शेष नाइट्रोजन सिंचाई के दौरान दी जाती है।

खरपतवार नियंत्रण और सिंचाई

फसल में निराई और गुड़ाई के लिए, पंक्ति बुवाई वाली फसल में दो बार निराई करना आवश्यक होता है। पहली निराई अंकुर निकलने के 15-20 दिन बाद की जाती है, जबकि दूसरी निराई इसके 15-20 दिन बाद करनी चाहिए।

खरीफ की फसल को बहुत कम सिंचाई की जरूरत होती है, जबकि ग्रीष्मकालीन फसल के लिए मिट्टी और जलवायु की स्थिति के आधार पर 2-5 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है।

कुटकी की फसल की कटाई

कुटकी की फसल की कटाई उस समय की जाती है जब पौधों के पत्ते और तने पूरी तरह से सूख जाते हैं और बीजों का रंग बदल जाता है। कटाई के बाद फसल को 2-3 दिनों तक सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है, जिसके बाद दानों को अलग किया जाता है। कटाई के बाद फसल की गहाई और सफाई की जाती है, फिर दानों को सुरक्षित भंडारण के लिए तैयार किया जाता है।

निष्कर्ष

कुटकी की खेती एक ऐसी फसल है, जो पोषण और सेहत के मामले में अत्यधिक लाभकारी है। इसे भारत के कई क्षेत्रों में उगाया जाता है, खासकर सूखे और पहाड़ी इलाकों में। कुटकी के पोषक तत्व, जैसे प्रोटीन, फाइबर, आयरन और जटिल कार्बोहाइड्रेट, इसे हर आयु वर्ग के लिए उपयुक्त बनाते हैं। 

यह फसल न केवल पाचन तंत्र को सुधारने में मदद करती है, बल्कि मधुमेह और हृदय रोगियों के लिए भी फायदेमंद है। इसकी खेती के दौरान सही जलवायु, उपयुक्त मिट्टी, उर्वरक प्रबंधन और समय पर सिंचाई का ध्यान रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

कुटकी की खेती किसानों के लिए कम लागत में अधिक लाभ प्रदान करने वाली फसल साबित हो सकती है। सही तकनीक और प्रबंधन से किसान बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।

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