सितंबर में तोरिया की फसल (Toriya ki fasal) कर किसान कमा सकते हैं अच्छा मुनाफा तोरिया की फसल (Toriya ki fasal) रबी सीजन में उगाई जाती है। यह एक तिलहन की फसल है, जिसके बीजों से तेल निकाला जाता है। तोरिया की खेती भारत के कई भागों में, विशेषकर उत्तरी और पूर्वी राज्यों में की जाती है। इस फसल को आसानी से शुष्क और अर्ध-शुष्क जलवायु में उगाया जा सकता है, और यह कम पानी में भी अच्छी पैदावार देती है।
जैसे कि सब्जी की खेती में ध्यान और प्रबंधन महत्वपूर्ण है, वैसे ही तोरिया की खेती भी उन्नत तकनीकों और सही समय पर की गई देखभाल से अधिक मुनाफा देने वाली हो सकती है।
तोरिया की फसल के लिए जलवायु
तोरिया की फसल को खरीफ और रबी मौसम के मध्य में भारत के मैदानी क्षेत्रों के अलावा देश के कई राज्यों के पठारी और पहाड़ी क्षेत्रों में उत्पादित किया जाता है।
भारत में तोरिया की फसल की औसत उपज अपेक्षाकृत कम है, जिसका मुख्य कारण अपर्याप्त पौधों की संख्या, उन्नत और संस्तुत किस्मों का उपयोग न करना, खरपतवार, कीट और रोग नियंत्रण पर पर्याप्त ध्यान न देना और कम और असंतुलित उर्वरक का प्रयोग है।
तोरिया की सफल के लिए मिट्टी और भूमि की तैयारी
तोरिया फसल (toriya fasal) वैसे तो हर प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। अच्छी उपज के लिये रेतीली दोमट और हल्की दोमट मिट्टी अधिक उपयुक्त है। भूमि क्षारीय एवं लवणीय नहीं होनी चाहिए।
तोरिया की खेती (toriya ki kheti) अधिकांशतः बारानी की जाती है। साथ ही जलनिकासी के लिए खेत में अच्छा प्रबंधन होना चाहिए। मिट्टी का पीएच स्तर 6.5-7.0 के बीच हो तो उत्तम होती है।
खेत को मिट्टी पलटने वाले हल और दो या तीन जुताई देसी हल या कल्टीवेटर से गहरा करना चाहिए, फिर पाटा लगाकर मिट्टी को भुरभुरी करना चाहिए। खेत पर्याप्त नमी से भरना चाहिए।
तोरिया की उन्नत किस्में
उन्नत किस्मों और सही फसल प्रबंधन से तोरिया की उपज को पंद्रह से बीस प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है।
उन्नत किस्मों के प्रमाणित बीज का उपयोग क्षेत्र की जलवायु, भूमि का प्रकार, सिंचाई की उपलब्धता और अन्य विशेषताओं पर किया जाना चाहिए। इसकी उन्नत किस्में निम्नलिखित है –
आजाद चेतना, पी.टी. 30, पी.टी. 303, तपेश्वरी, उत्तरा, भवानी, टी. 36 आदि।
तोरिया बुवाई का समय
बुवाई का मौसम एक स्थान से दूसरे स्थान पर मानसून की समाप्ति, फसल चक्र और आसपास के तापमान के आधार पर भिन्न हो सकता है।
बुवाई के दौरान अधिकतम अंकुरण के लिए तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं होना चाहिए। तोरिया की बुवाई के लिए 15 से 30 सितंबर की अवधि सबसे अच्छी है।
उर्वरक और खाद प्रबंधन
तोरिया की खेती में असिंचित स्थिति के लिए 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 किलोग्राम फॉस्फेट और 30 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करना चाहिए।
सिंचित क्षेत्रों में 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फॉस्फेट और 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर डालना चाहिए। फॉस्फेट का उपयोग अधिक लाभदायक है, क्योंकि इसमें 13 प्रतिशत सल्फर होता है।
निष्कर्ष:
सितंबर में तोरिया की फसल (toriya ki fasal) किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण विकल्प बन सकती है, जो कम समय और कम संसाधनों में अच्छी पैदावार देती है। यह फसल शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में भी उगाई जा सकती है, जिससे जलवायु की कठोरता का सामना किया जा सकता है। उन्नत किस्मों और सही कृषि प्रबंधन से उपज में वृद्धि की जा सकती है, जिससे किसानों को बेहतर मुनाफा मिल सकता है। इसके साथ ही, सही समय पर बुवाई, उर्वरक का संतुलित उपयोग, और फसल की उचित देखभाल से तोरिया की खेती अधिक लाभप्रद हो सकती है।
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लगातार पूछे जानें वाले प्रश्न :
- तोरिया की खेती कब की जाती है?
तोरिया की बुआई सितम्बर में की जानी चाहिए। गेहूँ की अच्छी फसल लेने के लिए तोरिया की बुआई सितम्बर के पहले पखवारे में समय मिलते ही की जानी चाहिए। भवानी प्रजाति की बुआई सितम्बर के दूसरे पखवारे में ही करें।
- तोरिया कौन सी फसल है?
रेपसीड/टोरिया और सरसों सोयाबीन और तेल ताड़ के बाद दुनिया की तीसरी सबसे महत्वपूर्ण खाद्य तिलहन फसलें हैं। यह ब्रैसिकेसी (क्रूसीफेरी) परिवार से संबंधित है। रेपसीड और सरसों की दो प्रजातियाँ हैं ब्रैसिका जुन्सिया और बी. कैम्पेस्ट्रिस।