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अर्जुन की खेती | Arjun ki kheti

अर्जुन की खेती: इस औषधीय पेड़ की खेती से किसान कमाएं  लाखों का मुनाफा

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अर्जुन की खेती: इस औषधीय पेड़ की खेती से किसान कमाएं  लाखों का मुनाफा:अर्जुन की खेती (arjun ki kheti) आयुर्वेदिक और पशुपालन दोनों ही दृष्टियों से महत्वपूर्ण मानी जाती है। अर्जुन का पेड़ मुख्य रूप से नदियों के किनारे, नम और उपजाऊ मिट्टी में उगता है और इसके विकास के लिए गर्म और नम जलवायु उत्तम होती है। इसकी खेती में पौधों के बीच 3-4 मीटर की दूरी रखी जाती है, ताकि पेड़ों का पूर्ण विकास हो सके।

अर्जुन का पेड़ अपने औषधीय गुणों के लिए प्रसिद्ध है, और इसकी छाल का उपयोग कई रोगों के उपचार में होता है।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि अर्जुन का पेड़ पशुओं के लिए भी एक उत्कृष्ट चारे का स्रोत हो सकता है? आइए जानें, अर्जुन की खेती कैसे की जाती है और यह पशुओं के लिए किस प्रकार लाभकारी है।

अर्जुन की खेती में जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएं

जलवायु

अर्जुन की खेती के लिए उपोष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय जलवायु अत्यधिक अनुकूल मानी जाती है। यह पेड़ 10°C से 45°C तक का तापमान सहन कर सकता है और 800-1200 मिमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में अच्छी वृद्धि करता है।

मिट्टी

अर्जुन को विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में उगाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी का pH स्तर 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए। इसकी गहरी जड़ें होती हैं, इसलिए अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी इसकी बेहतर वृद्धि के लिए लाभकारी होती है।

अर्जुन की खेती में भूमि की तैयारी

खेत की गहरी जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लें, ताकि पौधों की जड़ें आसानी से फैल सकें। अंतिम जुताई के बाद, मिट्टी में पोषक तत्वों की आपूर्ति के लिए सड़ी हुई गोबर की खाद डालें। इसके बाद, खेत को समतल कर लें, जिससे सिंचाई प्रभावी ढंग से की जा सके।

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अर्जुन के पेड़ लगाने का तरीका 

बीज से रोपाई: अर्जुन के बीजों को पानी में भिगोकर नर्सरी में बोएं। जब पौधे थोड़े बड़े हो जाएं, तो उन्हें मुख्य खेत में स्थानांतरित करें।
पौध से रोपाई: नर्सरी से तैयार पौधे खरीदकर उन्हें सीधे खेत में भी लगा सकते हैं। अर्जुन के पौधे बीज से उगाए जा सकते हैं, लेकिन कलम विधि से पौधों की बेहतर वृद्धि होती है।

पौधों को लगाने का सबसे अच्छा समय मानसून का मौसम होता है, जब मिट्टी में पर्याप्त नमी रहती है। रोपाई करते समय पौधों के बीच 5×5 मीटर की दूरी रखें। एक हेक्टेयर में लगभग 400-450 पौधे लगाए जा सकते हैं।

अर्जुन के पेड़ की देखभाल

सिंचाई: शुरुआती कुछ महीनों तक नियमित रूप से पानी दें। इसके बाद, यह पेड़ सूखा सहन करने में सक्षम होता है।

खाद: आवश्यकतानुसार समय-समय पर खाद का प्रयोग करें।

निराई-गुड़ाई: खरपतवारों को हटाने के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करें।

छंटाई: पेड़ का आकार बनाए रखने के लिए नियमित रूप से इसकी छंटाई करें।

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अर्जुन की खेती के फायदे

अर्जुन की लकड़ी, छाल और पत्ते बाजार में अच्छी कीमत पर बिकते हैं, जिससे किसान आर्थिक रूप से लाभान्वित होते हैं।

पर्यावरणीय लाभ: अर्जुन का पेड़ मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाता है और पर्यावरण को शुद्ध करता है।

पशुओं के लिए लाभ: अर्जुन के पत्ते पशुओं के लिए एक पौष्टिक और स्वस्थ चारे के रूप में काम करते हैं।

अर्जुन की छाल का उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं में होता है, इसलिए छाल का प्रयोग करने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह अवश्य लें।

अर्जुन की खेती एक लाभकारी और पर्यावरण के अनुकूल विकल्प है। किसान और पशुपालक अर्जुन की खेती से अतिरिक्त आय प्राप्त कर सकते हैं और अपने पशुओं के स्वास्थ्य में भी सुधार कर सकते हैं।

निष्कर्ष

अर्जुन की खेती किसानों के लिए एक अत्यधिक लाभकारी और पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण विकल्प है। इसकी औषधीय छाल और पत्ते न केवल आयुर्वेदिक उपचारों में काम आते हैं, बल्कि पशुओं के लिए एक पौष्टिक चारा भी प्रदान करते हैं। इसके अलावा, अर्जुन का पेड़ मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और पर्यावरण को शुद्ध करने में सहायक है। उपयुक्त जलवायु और मिट्टी में इसकी खेती करके किसान न केवल आर्थिक लाभ कमा सकते हैं, बल्कि अपने पशुओं के स्वास्थ्य और दूध उत्पादन को भी बेहतर बना सकते हैं। अर्जुन की खेती के माध्यम से किसान एक स्थायी और आय-सृजनकारी कृषि प्रणाली अपना सकते हैं।

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लगातार पूछे जाने वाले प्रश्न

1. अर्जुन का पेड़ कितने दिन में फल देता है?

अर्जुन का पेड़ 15- 16 साल में तैयार होता है. इस दौरान इसकी लम्बाई 11-12 मीटर और मोटाई 59-89 सेमी तक हो जाती है. बाजार में इसकी छाल काफी मंहगी बिकती है

2. बीज से अर्जुन का पेड़ कैसे उगाएं?

बीजों को 48 घंटे तक ठंडे पानी में भिगोकर पूर्व उपचारित किया जाना चाहिए । वैकल्पिक रूप से, बीजों को उबलते पानी में भिगोया जा सकता है और ठंडा होने दिया जा सकता है। बीजों को 24 घंटे तक भिगोए रखना चाहिए। पूर्व उपचारित बीजों की अंकुरण दर 90% तक होती है, जबकि अनुपचारित बीजों की अंकुरण दर 50%-60% होती है।

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