मटर की खेती (Matar Ki Kheti) से संबंधित विस्तृत जानकारी: मटर की खेती (Matar Ki Kheti) आमतौर पर सर्दियों में की जाती है और यह न केवल अच्छा मुनाफा देती है, बल्कि खेत की उर्वरता भी बढ़ाती है। मटर में मौजूद राइजोबियम बैक्टीरिया मिट्टी को उपजाऊ बनाने में सहायक होते हैं। अगर अगेती किस्मों की खेती की जाए, तो अधिक उत्पादन के साथ ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है।
इसकी हरी फलियों का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है, जो सेहत के लिए भी बेहद लाभकारी होती हैं। पकने के बाद, सूखी फलियों से दाल बनाई जाती है, जो पोषण से भरपूर होती है।
मटर की खेती मुख्य रूप से सब्जी फसल के रूप में की जाती है, जो कम समय में अधिक पैदावार देने वाली फसल है और इसे व्यापारिक दलहनी फसल भी कहा जाता है। मटर में राइजोबियम जीवाणु मौजूद होता है, जो भूमि की उर्वरता को बढ़ाने में सहायक होता है, इसलिए इसे खेत की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने के लिए भी उगाया जाता है।
मटर के दाने सुखाकर लंबे समय तक ताजे हरे मटर के रूप में इस्तेमाल किए जा सकते हैं। इसमें विटामिन, आयरन, और अन्य पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी हैं।
मटर को आमतौर पर सब्जी के रूप में पकाकर खाया जाता है। यह एक द्विबीजपत्री पौधा है, जिसकी लंबाई लगभग एक मीटर तक होती है, और इसके पौधों पर दाने फलियों के अंदर होते हैं।
भारत में मटर की खेती (Matar Ki Kheti) कच्ची फलियों को बेचने या सूखे दानों के रूप में बेचने के लिए की जाती है, जिससे किसान अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। यदि आप भी मटर की खेती से अच्छी कमाई करना चाहते हैं, तो इस लेख में हम मटर की खेती के तरीके और इसकी उन्नत किस्मों के बारे में जानकारी देंगे।
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मटर की खेती के लिए उपयुक्त मृदा, जलवायु एवं तापमान
मटर की खेती किसी भी उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन गहरी दोमट मिट्टी में इसे उगाकर अधिक पैदावार हासिल की जा सकती है। क्षारीय भूमि मटर की खेती के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती, और इसके लिए मिट्टी का पीएच मान 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय जलवायु मटर की खेती के लिए आदर्श मानी जाती है। भारत में, इसकी खेती रबी के मौसम में की जाती है, क्योंकि ठंडी जलवायु में मटर के पौधे बेहतर तरीके से बढ़ते हैं और सर्दियों के पाले को सहन कर सकते हैं।
इसके पौधों को बहुत अधिक वर्षा की आवश्यकता नहीं होती, और अत्यधिक गर्म मौसम इनके लिए अनुकूल नहीं होता। सामान्य तापमान में पौधे अच्छी तरह अंकुरित होते हैं, लेकिन फलियों के विकास के लिए कम तापमान की आवश्यकता होती है। मटर का पौधा न्यूनतम 5 डिग्री से लेकर अधिकतम 25 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान को सहन कर सकता है।
मटर की उन्नत किस्मे
बोनविले
बोनविले किस्म की मटर 60-70 दिन में फसल देने लगती है। इसका पौधा सामान्य आकार का होता है, जिसमें हल्की हरी फलियों के भीतर गहरे हरे बीज होते हैं, जो स्वाद में मीठे होते हैं। यह किस्म प्रति हेक्टेयर 100-120 क्विंटल उपज देती है, जबकि सूखे दानों का उत्पादन 12-15 क्विंटल तक हो सकता है।
मालवीय मटर-2
यह किस्म विशेष रूप से पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में अधिक पैदावार के लिए तैयार की गई है। इसकी फसल को 120-130 दिन में तैयार होने में लगता है। इसके पौधे सफेद फफूंदी और रतुआ रोग से मुक्त होते हैं, और प्रति हेक्टेयर 25-30 क्विंटल उत्पादन देते हैं।
पंजाब 89
पंजाब 89 किस्म की फलियां जोड़ों में लगती हैं। यह किस्म 80-90 दिनों के बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है, और इसकी फलियां गहरे रंग की होती हैं। यह प्रति हेक्टेयर 60 क्विंटल तक की उपज प्रदान करती है।
पूसा प्रभात
पूसा प्रभात एक उन्नत किस्म है जो कम समय में तैयार हो जाती है, और मुख्यतः उत्तर और पूर्वी भारत में उगाई जाती है। यह किस्म 100-110 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 40-50 क्विंटल की पैदावार देती है।
पंत 157
यह संकर किस्म 125-130 दिन में तैयार होती है। इसके पौधों पर चूर्णी फफूंदी और फली छेदक रोग का असर नहीं होता है, और यह प्रति हेक्टेयर 70 क्विंटल की उपज देती है।
वी एल 7
वी एल 7 एक अगेती किस्म है, जो कम ठंड में भी बेहतर ढंग से विकास करती है। यह 100-120 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके पौधों की फलियां और दाने हल्के हरे रंग के होते हैं, और चूर्णिल आसिता का प्रभाव नहीं देखा जाता। इसकी उपज प्रति हेक्टेयर 70-80 क्विंटल होती है।
आर्केल
आर्केल किस्म की मटर को तैयार होने में लगभग 55-60 दिन लगते हैं। इसके पौधे की ऊंचाई करीब डेढ़ फीट होती है और इसके बीज झुर्रीदार होते हैं। यह किस्म हरी फलियों और मटर उत्पादन के लिए उगाई जाती है, जहां एक फली में 6-8 दाने होते हैं।
लिंकन
लिंकन मटर के पौधे छोटे होते हैं और बीज रोपण के 80-90 दिन बाद फल देना शुरू कर देते हैं। इसकी फलियां हरी होती हैं और ऊपरी सिरे से मुड़ी रहती हैं। प्रत्येक फली में 8-10 मीठे दाने होते हैं। यह किस्म विशेष रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में उगाने के लिए विकसित की गई है।
मटर की खेती के लिए खेत कैसे तैयार करें
मटर की खेती के लिए भुरभुरी मृदा को सबसे उपयुक्त माना जाता है। इसके लिए खेत की सबसे पहले गहरी जुताई की जाती है, जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाए और खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाएं। जुताई के बाद, खेत को कुछ समय के लिए खुला छोड़ दिया जाता है ताकि मिट्टी को अच्छी तरह से धूप मिल सके। इसके बाद, प्रति हेक्टेयर 12 से 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद खेत में मिलानी होती है, ताकि मिट्टी की उर्वरता बढ़े और फसल के लिए अनुकूल स्थिति बने।
मटर के पौधों की सिंचाई
मटर के बीजों को अंकुरण के लिए नमी युक्त मिट्टी की आवश्यकता होती है, इसलिए बीज बोने के तुरंत बाद पौधों की रोपाई कर दी जाती है। नम भूमि में बीजों का अंकुरण बेहतर तरीके से होता है। पहली सिंचाई के बाद, मटर के पौधों की दूसरी सिंचाई 15 से 20 दिनों के भीतर की जाती है, और इसके बाद की सिंचाई हर 20 दिनों के अंतराल पर की जाती है।
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लगातार पूछे जाने वाले प्रश्न | Frequently Asked Questions
मटर की खेती में खरपतवार नियंत्रण कैसे करें?
मटर के पौधों में खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक और प्राकृतिक दोनों विधियों का उपयोग किया जा सकता है। रासायनिक विधि के तहत, बीज रोपाई के बाद लिन्यूरान का उचित मात्रा में छिड़काव करना आवश्यक होता है।
यदि आप प्राकृतिक विधि अपनाना चाहते हैं, तो बीज रोपाई के लगभग 25 दिन बाद पौधों की गुड़ाई करके खरपतवार को हटा सकते हैं। मटर के पौधों को केवल दो से तीन गुड़ाई की आवश्यकता होती है, जिसे प्रत्येक गुड़ाई के बीच 15 दिनों के अंतराल पर करना चाहिए।
मटर पर कवकनाशी का छिड़काव कब करें?
मटर, मसूर, चना • फूल आने के आरंभ में या रोग के प्रथम लक्षण पर प्रयोग करें सोयाबीन • कवकनाशक का प्रयोग निवारक रूप से या रोग के प्रथम लक्षण पर आरंभ करें, आरंभिक फूल आने से लेकर (R1) पूर्ण फली भरने तक (R5)।