जई की खेती कैसे करें: जई एक रबी मौसम की फसल है, जिसे ठंडे क्षेत्रों में उगाया जाता है। इसे मुख्य रूप से चारे की फसल के रूप में उपयोग किया जाता है, लेकिन कई स्थानों पर इसे अनाज की फसल के रूप में भी उगाया जाता है। जई का उपयोग खाद्य पदार्थों में भी किया जाता है।
जई की खेती (oats farming) के लिए पर्याप्त सिंचाई का होना बेहद जरूरी है। इस Blog में हम आपको जई की खेती से जुड़ी पूरी जानकारी प्रदान करेंगे।
जई की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी और जलवायु
जैसा कि आप जानते हैं, जई एक रबी की फसल है, और इसकी खेती के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है।
जई सर्दियों में 15-25 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले ठंडे वातावरण में अच्छी तरह विकसित होती है। यह नम परिस्थितियों में ठंड-प्रतिरोधी होती है और पाले एवं अत्यधिक ठंड को सहन करने में सक्षम है।
जई को जल जमाव वाली मिट्टी को छोड़कर लगभग सभी प्रकार की मिट्टियों में उगाया जा सकता है। हालांकि, यह अच्छी जल निकासी वाली दोमट या चिकनी दोमट मिट्टी में बेहतर उपज देती है।
जई की खेती में बुवाई के लिए भूमि की तैयारी
जई की बुवाई के लिए भूमि को अच्छी तरह से तैयार करना आवश्यक है ताकि बुवाई प्रक्रिया सुगम हो। इसके लिए खेत की जुताई हर्रो या कल्टीवेटर की मदद से दो से तीन बार करनी चाहिए।
ये भी पढ़े: सोयाबीन की खेती में फसल को प्रभावित करने वाले 5 रोग व उनकी रोकथाम
जई की उन्नत किस्में
अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए केंट, यूपीयू-212, वेस्टन II, एफएसओ-29, जेएचओ-851, ओएस-6, यूपीओ-94, ईसी-1185, आईजीएफआरआई-3021, रडार, अल्जीरियाई, ईसी-54807, आईसी-4263, फ्लेमिंग्स गोल्ड, एफसी-13594, वाहर जई-1, जई-2 और जई-03-91 जैसी किस्मों की बुवाई करें।
जई की बुवाई कब और कैसे करें?
देश के उत्तर-पश्चिम से लेकर पूर्वी क्षेत्रों तक, जई की बुआई अक्टूबर की शुरुआत से लेकर नवंबर के अंत तक की जानी चाहिए। चारे की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए, दिसंबर से मार्च के बीच देर से बुआई भी संभव है।
चारे की फसल के लिए प्रति हेक्टेयर 100 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है, जबकि दाने की फसल के लिए प्रति हेक्टेयर 80 किलोग्राम बीज पर्याप्त है।
जई की खेती में खाद और उर्वरक प्रबंधन
जिस खेत में जई की बुवाई करनी हो, उसमें अंतिम जुताई के समय प्रति हेक्टेयर 10 टन गोबर की खाद डालनी चाहिए।
फसल के लिए प्रति हेक्टेयर 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम सल्फर, और 20 किलोग्राम पोटाश का उपयोग करना चाहिए। नाइट्रोजन की एक-तिहाई मात्रा तथा सल्फर और पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय प्रदान करें।
फसल में सिंचाई प्रबंधन
जई की फसल को, बुआई से पहले की सिंचाई सहित, कुल 4-5 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। चारे के उद्देश्य से बोई गई फसल की प्रत्येक कटाई के बाद खेत की सिंचाई करना जरूरी है। सिंचाई का अंतराल 20-25 दिन रखा जा सकता है।
जई की कटाई और पैदावार
एकल कट किस्म की कटाई 50% फूल आने की अवस्था में की जाती है। पहली कटाई 60 दिन बाद करनी चाहिए, और दूसरी कटाई 50% फूल आने पर की जानी चाहिए।
मल्टीकट किस्मों में पहली कटाई 60 दिन के बाद होती है, जबकि दूसरी कटाई 45 दिन के अंतराल पर की जाती है। इसके कुछ दिनों बाद तीसरी कटाई 50% फूल आने की अवस्था में करें।
हरा चारा की उपज जई की फसल से लगभग 400-500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है।
निष्कर्ष
जई की खेती (oats farming) एक महत्वपूर्ण रबी फसल है, जो मुख्य रूप से चारे के लिए उपयोग की जाती है और कई क्षेत्रों में इसे अनाज के रूप में भी उगाया जाता है। ठंडी जलवायु और उपजाऊ, अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी जई की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
फसल की अच्छी पैदावार के लिए सही समय पर बुवाई, उचित खाद और उर्वरक प्रबंधन, नियमित सिंचाई, और समय पर कटाई आवश्यक है। उन्नत किस्मों का चयन और खेती की वैज्ञानिक विधियों का पालन करने से प्रति हेक्टेयर 400-500 क्विंटल हरे चारे की उपज प्राप्त की जा सकती है।
इस लेख में दी गई जानकारी का पालन कर किसान जई की फसल से न केवल अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि चारे की मांग को भी कुशलतापूर्वक पूरा कर सकते हैं।