संतरे की खेती orange farming
संतरे की खेती

संतरे की खेती (santra ki kheti) कैसे करें | संतरा की खेती के टिप्स

संतरे की खेती (santra ki kheti) कैसे करें | संतरा की खेती के टिप्स : संतरा खट्टे फलों की श्रेणी में आता है और इसे मीठा संतरा भी कहा जाता है। माना जाता है कि यह फल मैंडरिन और पोमेलो के संकरण से उत्पन्न हुआ है।

संतरे के पेड़ दुनिया भर के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं। हालांकि, यह पेड़ जंगली रूप में नहीं मिलता; इसे खट्टे फलों की दो अन्य प्रजातियों से संकरण कर पालतू बनाया गया है। इस लेख में हम आपको संतरे की खेती (Orange Farming) से संबंधित पूरी जानकारी देंगे।

संतरे की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

संतरे की खेती करते समय मिट्टी की उपरी और नीचे की सतह की संरचना और विशेषताओं पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है। 

बगीचा लगाने से पहले मिट्टी की जांच करने से भविष्य में होने वाली समस्याओं का पता लगाया जा सकता है, जो उत्पादन और आयु को बढ़ा सकता है।

संतरे लगभग सभी प्रकार की अच्छे जल निकास वाली जीवांश युक्त भूमि में लगाए जा सकते हैं, लेकिन गहरी दोमट मिट्टी सबसे अच्छी है। भूमि की गहराई दो मीटर होनी चाहिए। 

मृदा का pH 4.5 से 7.5 के बीच अनुकूल रहता है। यह सफलतापूर्वक खेती के लिए मृदा कंकरीली कठोर और अवमृदा नहीं होनी चाहिए।

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संतरे की खेती orange farming
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संतरे की खेती कहाँ होती है?

नागपुर संतरे की खेती के लिए भारत में मशहूर है। महाराष्ट्र में लगभग 80% संतरा उगाया जाता है। लेकिन कई ऐसी उन्नत किस्में विकसित की जा चुकी हैं कि दूसरे राज्यों में संतरे की खेती भी संभव है। 

महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में संतरे की खेती की जाती है।

संतरे के पौधे का चयन कैसे करें

संतरे के रोगमुक्त पौधे हमेशा संरक्षित पौधशाला से ही खरीदने चाहिए, क्योंकि ये पौधे फाइटोप्थारा फफूंद और विषाणु से सुरक्षित होते हैं। रंगपुर लाइम या जम्बेरी के मूलवंत पर कलम किए हुए पौधे ही चुनें।

कलम का पौधा रोगमुक्त, सीधा और लगभग 60 सेमी ऊँचा होना चाहिए, जिसमें जमीन की सतह से 25 सेमी की ऊँचाई पर वृद्धि हो।

इन पौधों में मजबूत और अच्छी तरह विकसित तन्तूमूल जड़ें होनी चाहिए। जड़ों को निकालते समय वे न टूटें और जड़ों पर कोई घाव नहीं होना चाहिए।

संतरे की फसल में उर्वरक प्रबंधन

दिसंबर-जनवरी में गोबर की खाद, सुपर फास्फेट और म्यूरेट ऑफ पोटाश की पूरी मात्रा दें। यूरिया की 1/3 मात्रा फरवरी में फूल आने से पहले, 1/3 मात्रा अप्रैल में फल बनने के बाद, और शेष 1/3 मात्रा अगस्त के अंतिम सप्ताह में दें।

फरवरी और जुलाई में संतरे की फसल पर गौण तत्वों का छिड़काव करना लाभकारी होता है। इसके लिए 550 ग्राम जिंक सल्फेट, 300 ग्राम कॉपर सल्फेट, 250 ग्राम मैंगनीज सल्फेट, 200 ग्राम मैग्नेशियम सल्फेट, 100 ग्राम बोरिक एसिड, 200 ग्राम फेरस सल्फेट और 900 ग्राम चूना लेकर 100 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

संतरे की फसल में पानी कब दे?

अधिक सिंचाई से अधिक उत्पादन की धारणा गलत है। पटपानी बगीचे को नुकसान पहुंचा सकता है। सिंचाई गर्मियों में चार से सात दिन और सर्दियों में दस से पंद्रह दिन के अंतराल पर ही करनी चाहिए।

पेड़ के तने पर सिंचाई का पानी नहीं लगना चाहिए। इसके लिए डबल रिंग सिंचाई पद्धति का उपयोग करें।

टपक सिंचाई एक बेहतरीन विकल्प है, क्योंकि इससे पानी की बचत 40 से 50 प्रतिशत तक होती है और खरपतवार की वृद्धि 40 से 65 प्रतिशत तक कम होती है। इससे पेड़ अच्छी तरह बढ़ते हैं, फलों की गुणवत्ता में सुधार होता है, और श्रम लागत भी घटती है।

निष्कर्ष

संतरे की खेती एक लाभकारी और महत्वपूर्ण कृषि गतिविधि है, जो उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में व्यापक रूप से की जाती है। सही मिट्टी का चयन, रोगमुक्त पौधों की खरीद, उर्वरक प्रबंधन और उचित सिंचाई तकनीकों का उपयोग संतरे की फसल को अधिक उत्पादक और लाभदायक बनाता है।

संतरे के पौधे की वृद्धि, फल की गुणवत्ता और उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए टपक सिंचाई जैसी आधुनिक तकनीकों का प्रयोग करना बेहद प्रभावी है। संतरे की खेती में धैर्य, ज्ञान और उचित देखभाल की आवश्यकता होती है, जिससे किसान न केवल अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि अपनी आर्थिक स्थिति को भी मजबूत कर सकते हैं।

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