हल्दी की खेती Haldi ki kheti kaise karen Turmeric Farming
हल्दी की खेती Haldi ki kheti kaise karen Turmeric Farming

हल्दी की खेती किसानों के लिए वरदान | भारत में हल्दी की खेती से मोटी कमाई कैसे करें

हल्दी की खेती: हल्दी भारत में बिहार जैसे राज्यों की प्रमुख मसाला फसल है। क्षेत्रफल एवं उत्पादन में इसका प्रथम स्थान है। हल्दी का उपयोग हमारे भोजन में नित्यादीन दिया जाता है इसका सभी धार्मिक कार्यों में मुख्य स्थान प्राप्त है।

हल्दी की खेती Haldi ki kheti kaise karen Turmeric Farming
हल्दी की खेती Haldi ki kheti kaise karen Turmeric Farming

हल्दी का काफी औषधीय गुण है इसका उपयोग दवा एवं सौन्दर्य प्रसाधनों में भी होता है। हल्दी के निर्यात से भारत को करोड़ों रूपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। भारत के किसान आज भी लगभग अनभिग्य है की वैज्ञानिक तरीके से हल्दी की खेती कैसे करें, इसलिए भारत के किसान ब्लॉग पर आज हम turmeric cultivation (haldi ki kheti) के बारे में सम्पूर्ण जानकारी शेयर कर रहे हैं: आप इसे दुसरे किसान भाइयों तक भी शेयर करें ताकि वे भी हल्दी की खेती से मोटी कमाई कर सकें:

हल्दी की खेती के लिए जलवायु कैसी चाहिए

हल्दी की खेती उष्ण और उप – शीतोष्ण जलवायु में की जाती है। फसल के विकास के समय गर्म एवं नम जलवायु उपयुक्त होती है परंतु गांठ बनने के समय ठंड 25-30 डिग्री जलवायु की आवश्यकता होती है।

हल्दी की खेती का समय एवं हल्दी की बुवाई की जानकारी

हल्दी की खेती का समय मानसून के महीनों में होता है | जो की पहली बर्षा होते ही हल्‍दी की खेती हेतु भूमि को तैयार किया जाता है, बर्षा के अनुसार अप्रैल से लेकर जुलाई के प्रथम सप्ताह तक बुवाई की जा सकती है। हल्दी का बीज :- हल्‍दी की खेती हेतु २००० से २५०० किलोग्राम/हैक्टेंयर प्रकंद बीज की आवश्यतकता होती है। हल्दी बुवाई का समय – अलग-अलग किस्मों के आधार पर हल्दी की बुवाई और हल्दी की खेती का समय 15 मई से लेकर 30 जून के बीच होती है। 

हल्दी की खेती के लिए बीज की किस्में

  • राजेन्द्र सोनिया : हल्दी की खेती के लिए इस किस्म के पौधे छोटे यानी 60-80 से. मी. ऊँची तथा 195 से 210 दिन में तैयार हो जाती है। इस किस्म की उपज क्षमता 400 से 450 क्विंटल प्रति हेक्टर तथा पीलापन 8 से 8.5 प्रतिशत है।
  • आर.एच. 5: इसके पौधे भी छोटे यानी 80 से 100 से. मी. ऊँची तथा 210 से 220 दिन में तैयार हो जाती है। इस किस्म की उपज क्षमता 500 से 550 क्विंटल प्रति हेक्टर तथा पीलापन 7.0 प्रतिशत है।
  • आर. एच.9/90: इसके पौधे मध्य ऊँचाई की यानि 110-120 से. मी. ऊँचाई की होती है तथा 210 से 220 दिन के समय लगता है। इस किस्म की उपज क्षमता 450 से 500 क्विंटल प्रति हेक्टर है।
  • आर. एच. 13/90:  हल्दी की खेती में बेहतर उत्पादन प्राप्त करने के लिए इस हल्दी की किस्म के पौधे मध्यम आकार यानि 110 – 120 से. मी. ऊँचाई की होते है इसके तैयार होने में 200 से 210 दिन का समय लगता है। इस किस्म की उपज क्षमता 450 से 375 क्विंटल प्रति हेक्टर है।

हल्दी की खेती के लिए खेत एवं मिटटी की आवश्यकता

हल्दी की अधिक उपज के लिए जीवांश जल निकास वाली बलूई दोमट से हल्की दोमट भूमि उपयुक्त होती है। इसके गांठ जमीन के अंदर बनते है इसलिए दो बार मिट्टी पलटने वाले हल से तथा तीन से चार बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई करके एवं पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभुरी तथा समतल बना लें।

जैविक खाद एवं उर्वरक का उपयोग करके हल्दी की खेती कैसे करते हैं

अगर किसान भाई यह जानना चाहते हैं की हल्दी की खेती कैसे करते हैं और हल्दी की खेती में मुनाफा कमाने के क्या करना चाहिए, तो यह ब्लॉग आपके लिए बेहतर है | हल्दी की खेती के लिए एक हेक्टर क्षेत्रफल के लिए निम्नलिखित मात्रा में खाद एवं उर्वरकों का व्यवहार करना लाभदायक होता है।

  • सड़ा हुआ कंपोस्ट/गोबर की खाद : 250 से 300 क्विंटल
  • नेत्रजन                       : 100से 150 किलो ग्रा.
  • फास्फोरस (स्फूर)              : 50 से 60 किलो ग्रा.
  • पोटाश                        : 100 से 120 किलो ग्रा.
  • जिंक सल्फेट                  : 20 से 25 किलो ग्रा.

सड़ा हुआ गोबर की खाद या कंपोस्ट से रोपाई 15 से 20 दिन पहले खेत में छिटकर जोताई करने। फास्फोरस, पोटाश एवं जिंक सल्फेट को बोआई/रोपाई से एक दिन पहले खेत में अच्छी तरह मिला देना चाहिए। नेत्रजन खाद को तीन बराबर भागों में बांट कर पहला भाग रोपाई से 40 से 45 दिन बाद, दूसरा भाग 80 से 90 दिन बाद तथा तीसरा भाग 100 से 120 दिन बाद देना चाहिए।

हल्दी की बोआई / रोपाई  का समय: हल्दी बोआई या रोपाई 15 मई से 30 मई का समय उपयुक्त है लेकिन विशेष परिस्थिति में 10 जून तक इसकी रोपाई की जा सकती है।

रोपाई/बोआई : हल्दी की रोपाई दो प्रकार से की जाती है।

haldi-ki-kheti
हल्दी की खेती, समय, उत्पादन, किस्में, लागत और मुनाफा

1. समतल विधि से हल्दी की खेती
2. मेढ़ विधि से हल्दी की खेती

समतल विधि में भूमि को तैयार कर समतल के लेते है। कूदल में पंक्ति से पंक्ति 30 से. मी. तथा गांठ से गांठ की दूरी 20 से. मी. पर रोपाई की जा सकती है।

मेढ़ विधि में दो तरह से बोआई की जाती है। 1. एकल पंक्ति विधि तथा 2. पंक्ति विधि। एकल पंक्ति विधि में 30 से. मी. के मेढ़ पर बीच में 20 से. मी. की दूरी पर गांठ को रख देते हैं तथा 40 से.मी. मिट्टी चढ़ा देते हैं जबकि दो पंक्ति विधि में 50 स. मी, मेढ़ पर दो लाइन, जो पंक्ति से पंक्ति 30 से. मी. तथा गांठ से गांठ 20 से. मी. की दूरी पर रखकर 60 से. मी. कूढ़ से मिट्टी उठाकर चढ़ा देते हैं।

बोआई की दूरी तथा हल्दी की खेती के लिए बीज की मात्रा

हल्दी के बोआई के लिए 30 – 35 ग्राम के गांठ उपयुक्त होती है। गांठ को पंक्ति से पंक्ति 30 से. मी. तथा कंद से कंद की दूरी 20 से. मी. एवं 5-6 से. मी. गहराई रोपाई या बोआई करनी चाहिए। हल्दी की खेती का समय ध्यान में रखकर किसान हल्दी के  कंद को रोपने के पहले इंडोफिल एम् – 45 का 2.5 ग्राम वेभिस्टीन का 1.0 ग्राम के हिसाब से प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर कंद को 30 – 45 मिनट तक उपचारित करके लगाना चाहिए।

झपनी : रोपाई या बोआई के बाद खेतों को हरी शीशम की पत्तियों से (5 से. मी. मोटी परत) ढक दें इससे खरपतवार नियंत्रण एवं गांठों का जमाव सामान्य रूप से होता है।

निकाई – गुड़ाई: हल्दी में तीन निकाई – गुड़ाई करें। पहला निकाई 35-40 दिन बाद, द्वितीय 60 से 70 दिन बाद तथा तीसरा 90-100 दिनों बाद  करें। प्रत्येक निकाई गुड़ाई के समय पौधों की जड़ों के चारों तरफ मिट्टी अवश्य चढ़ावें।

हल्दी की फसल में सिंचाई : हल्दी की पैदावार बरसात में होता है इसलिए इस फसल में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। जबकि समय पर नहीं होने वर्षा के परिस्थिति में, आवश्यकतानुसार सिंचाई अवश्य करनी चाहिए।

खोदाई : हल्दी की खोदाई दो प्रयोजन से किया जाता है। 1. उबालने यानि सोंठ बनाने तथा 2. बीज के लिए। सोंठ के लिए हल्दी की खोदाई जब पौधे पीले पड़ने लगे तब खोदाई कर सकते है। जबकि बीज के लिए पौधे पूर्ण रूप से सूख जाते है तब खोदाई करते है।

हल्दी की उपज : हल्दी की उपज किस्म एवं उत्पादन के तौर तरीकों पर निर्भर करता है। हल्दी की औसत उपज 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टर है।

हल्दी के पौधों का संरक्षण

हल्दी की खेती में नुकसानदायक कीट

थ्रिप्स : छोटे लाल, काला एवं उजले रंग कीड़े पत्तियों के रस चूसते है एवं पत्तियों को मोड़कर पाईपनुमा बना देते है। इससे बचाव के लिए डाई मिथियोट का 1.5 मिली. या कार्बाराइन का 1.0 मिली. प्रति लीटर पानी में घोलबनाकर 15 दिन के अन्तराल पर तीन छिड़काव करें।

हल्दी की खेती में लगने वाले रोग

प्रकंद विगलन रोग: पत्तियाँ पीली पड़कर सुखने लगती है तथा जमीन के उपट का तना गल जाता है भूमि के भीतर का प्रकंद भी सड़कर गोबर की खाद की तरह हो जाता है। यह बिमारी जल जमाव वाले क्षेत्रों में अधिक लगते हैं। इस रोग से बचाव के इए इंडोफिल एम – 45 का 2.5 ग्राम एवं वेभिस्टीन का 1 ग्राम मिश्रण बनाकर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर बीज उपचारित कर लगावें और खड़ी फसल पर 15 दिन के अन्तराल में दो से तीन  छिड़काव करे तथा रोग की अधिकता में पौधों के साथ – साथ जड़ की सिंचाई करें।

पर्ण धब्बा रोग : पत्तियों के बीच में या किनारे पर बड़े बड़े धब्बे बन जाते है जिससे फसल की वृद्धि रूक जाती है।

पर्ण चित्ती रोग: इस बीमारी के प्रकोप होने पर पत्तियों पर बहुत छोटी – छोटी चित्तियाँ बन जाती है। बाद में पत्तियाँ पीली पड़ने लगती है और सूख जाती है। पर्ण धब्बा रोग एवं चित्ती रोग से बचाव के लिए 15 दिन के अन्तराल दो से तीन छिड़काव इंडोफिल एम्- 45 का 2.5 ग्रा. एवं वेभिस्टीन का 1 ग्रा. का मिश्रण बनाकर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

राज्य कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित मसाला एवं कंदमूल फसलों की उन्नत किस्में
क्र. सं.फसलविकसित किस्म का नाम (उपज क्षमता)  क्विंटल/हे.)
1.मसाला
क.हल्दी की सबसे बेहतर किस्मराजेन्द्र सोनिया – 10 (450-500)
ख.मेथी की किस्मराजेन्द्र क्रांति – 16 (12-13)
ग.धनियाँ की किस्मराजेन्द्र स्वाति (15 – 18)
घ.मिर्च की किस्म85 – 2  (45 – 47)
2.कंदमूल फसलें
क.आलू की किस्मराजेन्द्र आलू – 1 (250-300), राजेन्द्र आलू – 2 (२२०-250, राजेन्द्र आलू – 3 (200 – 250)
ख.मिश्रीकंद की किस्मराजेन्द्र मिश्रीकंद – 1 (250 – 300)
ग.शकरकंद की किस्मराजेन्द्र शकरकंद – 5 (200-250), राजेन्द्र शकरकंद – 35 (250-300) राजेन्द्र शकरकंद – 43 (200-250) राजेन्द्र शकरकंद – 47 (300-350), राजेन्द्र शकरकंद – 92 (170-280)
घ.ओल की किस्मगजेन्द्र (400-500)
अरबी की किस्मसफेद गौरिया (200-250)

FAQ: हल्दी की फसल से जुड़े पाठकों के सवाल


1.  हल्दी कौन से महीने में लगाई जाती है?

मानसून की पहली बर्षा होते ही हल्‍दी की खेती हेतु भूमि को तैयार किया जाता है, बर्षा के अनुसार अप्रैल से लेकर जुलाई के प्रथम सप्ताह तक बुवाई की जा सकती है।

2. हल्दी कौन से मौसम में बोई जाती है?

हल्दी को सबसे अच्छे परिणामों के लिए, आपको गर्मी के महीनों में बोना जाना चाहिए, जैसे जून और जुलाई। इस समय में मौसम थोड़ा ठंडा होता है और वायुमंडल सुहावना होता है, जिससे हल्दी की फसल को सही मात्रा में पानी मिल सकता है।

3. एक बीघा में कितनी हल्दी निकलती है?

किसान शंभु सिंह के मुताबिक, वह पिछले पांच वर्षों से हल्दी की खेती कर रहे हैं। एक बीघा में करीब 800 से 900 किलो  पैदावार होता है। हल्दी की खेती में बेहतर उर्वरक, वर्मी कंपोस्ट खाद (केंचुआ की खाद) व जिप्सम का प्रयोग किया जाता है।

4. सबसे बढ़िया हल्दी कौन सी होती है?

लाकाडोंग हल्दी मेघालय राज्य में स्थित लाकाडोंग गांव से आती है। इसे दुनिया की सबसे अच्छी हल्दी माना जाता है क्योंकि इसमें करक्यूमिन की मात्रा बहुत अधिक होती है।

अगर आप खेती से जुड़े और बहुत से मुद्दों जैसे की पशुपालन, डेयरी उधोग, कृषि यंत्र, बेहतर मुनाफे वाली फसलें आदि जानना चाहते हैं तो हमारे ब्लॉग भारत के किसान पर आपका स्वागत है |

Spread the love