शकरकंदी केवल एक सब्जी नहीं है, बल्कि किसानों के लिए एक लाभकारी आय का स्रोत भी है।
शकरकंदी की खेती करना सरल है और इससे अच्छा मुनाफा प्राप्त किया जा सकता है। शकरकंद कम पानी में भी अच्छी तरह बढ़ती है और इसकी खेती में ज्यादा खर्च भी नहीं आता।
बाजार में शकरकंद की मांग हमेशा बनी रहती है, जिससे किसानों को अच्छा लाभ मिलता है। साथ ही, शकरकंद पोषक तत्वों से भरपूर होती है, जिसमें विटामिन ए, सी, और बी कॉम्प्लेक्स शामिल होते हैं।
शकरकंद को सब्जी, मिठाई और स्नैक्स के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। यहाँ हम आपको इसकी खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करेंगे।
शकरकंदी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
शकरकंद की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, जैसे दोमट मिट्टी, लेकिन यह अधिक उपजाऊ और अच्छे जल निकास वाली मिट्टी में सबसे बेहतर उपज देती है।
ध्यान रखें कि शकरकंद की खेती हल्की रेतली या भारी चिकनी मिट्टी में नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इनमें गांठों का विकास सही तरीके से नहीं हो पाता है। अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी का pH स्तर 5.8 से 6.7 के बीच होना चाहिए।
ये भी पढ़ें: दूधिया मशरूम उगाकर आप भी कर सकते हैं लाखों की कमाई
खेत की तैयारी कैसे करें ?
- इसकी खेती करने के लिए खेती की 2-3 बार अच्छे से जुताई करे ताकि खेत की मिट्टी नरम, भुरभुरी और समतल हो जाए।
- इसकी खेती के लिए खेत की तैयारी सबसे मत्वपूर्ण होती है, जुताई के बाद खेत में अच्छे से क्यारिया बना लेनी चाहिए शकरकंद की बुवाई क्यारियों में की जाती है।
- खेत को अच्छी तरह जुताई कर लें। मिट्टी की गहराई कम से कम 30 सेमी होनी चाहिए। 60 सेमी की दूरी पर मेड़ें और खाँचे बनाएँ। शकरकंद को क्यारियों में भी उगाया जा सकता है।
शकरकंदी की किस्में
- भारत में कई तरह की शकरकंदी की किस्में उगाई जाती हैं, जैसे कि सुरखी, पीली, सफेद आदि।
- आप अपनी जलवायु और मिट्टी के अनुसार किसी भी किस्म की शकरकंदी उगा सकते हैं।
- यहाँ शकरकंद की कुछ उन्नत और बेहतरीन किस्में दी गई हैं: Co 3, Co CIP 1, श्री नंदिनी, श्री वर्धिनी, किरण, श्री भद्रा, श्री रत्ना, गौरी, और संकर। इन किस्मों के अलावा, SP 4, SP 13, SP 18 और मुसीरी ठंडेल भी प्रमुख देशी किस्में हैं।
पौधों की रोपाई कैसे की जाती है?
- शकरकंदी के पौधे पुराने पौधों की कटिंग से तैयार किए जाते है।
- रोपण के लिए बेल की कटिंग दो या तीन गांठों वाली दस से पंद्रह सेमी लंबी होनी चाहिए और तीन महीने या उससे अधिक उम्र की बेलों से चुनी जानी चाहिए।
- 400 ग्राम एज़ोस्पायरिलम को पर्याप्त मात्रा में पानी में मिलाकर बेल की कलमों को घोल में डालें। रोपाई करते समय प्रत्येक कटिंग के बीच लगभग एक फुट की दूरी रखनी चाहिए।
- 20 सेंटीमीटर की गहराई में कटिंग लगाना चाहिए।
- इस प्रक्रिया में पौधों के विकास के दौरान बार-बार मिट्टी चढ़ाने की आवश्यकता नहीं होती है। एक एकड़ में 250 से 350 किलो बेल की जरूरत होती है।
शकरकंदी की फसल में सिंचाई
- शकरकंदी की फसल को नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है।
- मानसून के मौसम में प्राकृतिक वर्षा पर्याप्त होती है, लेकिन शुष्क मौसम में हर 10-15 दिन पर सिंचाई की आवश्यकता होती है।
- ध्यान रखें कि अत्यधिक जलभराव से बचें, क्योंकि यह फसल की जड़ों को सड़ा सकता है।
शकरकंद की फसल की कटाई और भंडारण
- शकरकंदी की फसल आमतौर पर 4-5 महीनों में तैयार हो जाती है। जब पौधों की पत्तियाँ पीली होकर मुरझाने लगें, तो यह संकेत है कि कंदों की कटाई का समय आ गया है।
- कंदों को सावधानीपूर्वक मिट्टी से निकाला जाता है ताकि वे क्षतिग्रस्त न हों। कटाई के बाद कंदों को साफ करके धूप में सुखाया जाता है।
- शकरकंदी को ठंडी और सूखी जगह पर भंडारित करना चाहिए। इसे प्लास्टिक की थैलियों या बोरे में रखकर लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
- विपणन के लिए स्थानीय बाजारों के अलावा, बड़े शहरों और सुपरमार्केट में भी आप इसे बेच सकते हैं। शकरकंदी की बढ़ती मांग को देखते हुए इसके अच्छे दाम मिलने की संभावना रहती है।
यह blog किसानों के लिए उपयोगी हो सकता है क्योंकि इसमें शकरकंदी की खेती के बारे में जानकारी दी गई है।
इसमें खेती की प्रक्रिया, देखभाल, और कटाई के बारे में बताया गया है। साथ ही, इसमें शकरकंदी की विभिन्न किस्मों और भंडारण के बारे में भी जानकारी दी गई है।
ये भी पढ़ें:मशरूम की खेती हेतु तीन बेहतरीन तकनीकों के बारे में जानें