shakarkand-ki-kheti

शकरकंद की खेती कैसे करें | शकरकंद की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

शकरकंद की फसल को कंदीय फसलों में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। भारत में शकरकंद की खेती का क्षेत्रफल लगातार बढ़ रहा है, जिससे यह फसल भारतीय कृषि में एक प्रमुख स्थान रखती है। आधुनिक तकनीकों के साथ शकरकंद की खेती करके किसान बेहतर उत्पादन प्राप्त कर रहे हैं और अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। 

व्यापारिक दृष्टिकोण से भी शकरकंद की खेती अत्यधिक लाभकारी है। यदि आप शकरकंद की खेती करना चाहते हैं और इसके आधुनिक तरीकों के बारे में जानना चाहते हैं, तो यह लेख आपके लिए अत्यंत उपयोगी होगा।

इस लेख में शकरकंद की खेती कब और कैसे की जाती है, इसके लिए उपयुक्त जलवायु, मिट्टी, खाद और उर्वरक के साथ-साथ शकरकंद की खेती के लिए आवश्यक पीएच मान और शकरकंद की रोपाई के तरीकों की जानकारी दी गई है।

शकरकंद की खेती कैसे करें: आधुनिक तकनीक और महत्वपूर्ण जानकारी

शकरकंद की खेती कैसे करें, यह जानना हर किसान के लिए बेहद जरूरी है जो फसल की उत्पादकता और मुनाफे को बढ़ाना चाहते हैं। शकरकंद की खेती में आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके किसान बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए सही जलवायु, उपयुक्त मिट्टी, खाद और उर्वरक का चयन महत्वपूर्ण है। 

शकरकंद की खेती के लिए उचित पीएच मान और रोपाई की विधियों का पालन करने से फसल की गुणवत्ता में वृद्धि होती है। इस लेख में शकरकंद की खेती से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है, जो आपको अधिक उत्पादन और मुनाफे के लिए मदद करेगी।

ये भी पढ़े: भारत में जैविक खेती (Organic Farming) के फायदे, चुनौतियाँ और भविष्य

शकरकंद की फसल के लिए भूमि, जलवायु एवं उपयुक्त समय

शकरकंद की खेती (Sweet Potato Farming) से बेहतरीन पैदावार लेने के लिए समुचित जल निकासी वाली और कार्बनिक तत्वों से युक्त दोमट अथवा चिकनी दोमट भूमि सबसे अच्छी मानी गई है। 

शकरकंद की फसल का बेहतरीन उत्पादन लेने के लिए मिट्टी का पी. एच. 5.8 से 6.7 के मध्य होना चाहिए। 

शकरकंद की खेती के लिए शीतोष्ण और समशीतोष्ण जलवायु अनुकूल मानी जाती है। शकरकंद की खेती के लिए सर्वोत्तम तापमान 21 से 27 डिग्री के मध्य होना चाहिए। शकरकंद के लिए 75 से 150 सेंटीमीटर वर्षा अनुकूल मानी जाती है। 

रबी के मौसम में अक्टूबर से जनवरी में सिंचाई के साथ की जाती है। उत्तर भारत में शकरकन्द की खेती रबी, खरीफ व जायद तीनों मौसम में की जाती है। खरीफ ऋतु में इसकी खेती सर्वाधिक की जाती है। खरीफ सीजन में 15 जुलाई से 30 अगस्त तक शकरकंद की लताओं को लगा देना चाहिए। 

सिंचाई की सुविधा सहित रबी (अक्टूबर से जनवरी) के मौसम में भी शकरकंद की खेती की जाती है। जायद ऋतुओं में, इसकी लताओं को लगाने का वक्त फरवरी से मई तक का होता है।

 इस मौसम में खेती का प्रमुख उद्देश्य लताओं को जीवित रखना होता है। जिससे कि खरीफ की खेती में उनका इस्तेमाल हो सके। लताओं के अतिरिक्त शकरकन्द के कन्द को लगाकर भी सुनहरी शकरकन्द की खेती की जा सकती है।

shakarkand-ki-kheti

शकरकंद की उन्नत किस्में कौन-कौन सी होती हैं

गौरी- शकरकंद की इस किस्म को साल 1998 में इजात किया गया था। गौरी किस्म को तैयार होने में लगभग 110 से 120 दिन का समय लग जाता है। शकरकंद की इस किस्म के कंद का रंग बैंगनी लाल होता है। गौरी किस्म की शकरकंद से औसतन उत्पादन तकरीबन 20 टन तक हो जाती है। 

इस किस्म को खरीफ एवं रवी के मौसम में उत्पादित किया जाता है। श्री कनका- शकरकंद की श्री कनका किस्म को साल 2004 में विकसित किया गया था। इस किस्म के कन्द का छिलका दूधिया रंग का होता है। 

इसको काटने पर पीले रंग का गूदा नजर आता है। यह 100 से 110 दिन के समयांतराल में पककर तैयार होने वाली किस्म है। इस किस्म का उत्पादन 20 से 25 टन प्रति हेक्टेयर है। 

एस टी-13 – शकरकंद की इस किस्म का गूदा बैगनी काले रंग का होता है। जानकारी के लिए बतादें, कि कंद को काटने पर गूदा बिल्कुल चुकंदर जैसे रंग का नजर आता है। इस किस्म के अंदर बीटा केरोटिन की मात्रा जीरो होती है।

लेकिन, एंथोसायनिन (90 मिली ग्राम प्रति 100 ग्राम) वर्णक की वजह से इसका रंग बैंगनी-काला होता है। साथ ही, मिठास भी काफी कम होती हैं। लेकिन, एंटीऑक्सीडेन्ट एवं आयु बढ़ाने के लिए अच्छी साबित होती है। यह 110 दिन की समयावधि में पककर तैयार हो जाती है। 

साथ ही, इसका उत्पादन 14 से 15 टन प्रति हैक्टर होता है। यह भी पढ़ें: जिमीकंद की खेती से जीवन में आनंद ही आनंद एस टी- 14 – शकरकंद की यह किस्म साल 2011 में इजात की गई थी। 

शकरकंद की इस किस्म के कंद का रंग थोड़ा पीला वहीं गूदे का रंग हरा पीला होता है। इस किस्म के अंदर उच्च मात्रा में वीटा केरोटिन (20 मिली ग्राम प्रति 30 ग्राम) विघमान रहता है। 

इस किस्म को तैयार होने में 110 दिन का वक्त लगता है। यदि इसकी उपज की बात की जाए तो वह 15 से 71 टन प्रति हेक्टेयर होती है। आज तक के परीक्षण में इस किस्म को सबसे अच्छा पाया गया है। सिपस्वा 2- शकरकंद की इस किस्म का उत्पादन अम्लीय मृदा में भी किया जा सकता है। 

इनमें केरोटिन की प्रचूर मात्रा होती है। शकरकंद की यह किस्म 110 दिन की समयावधि में पककर तैयार हो जाती है। इसकी उपज 20 से 24 टन प्रति हेक्टेयर है। इन किस्मों अतिरिक्त शकरकंद की और भी कई सारी किस्में जैसे कि – पूसा सफेद, पूसा रेड, पूसा सुहावनी, एच- 268, एस- 30, वर्षा और कोनकन, अशवनी, राजेन्द्र शकरकंद- 35, 43 और 51, करन, भुवन संकर, सीओ- 1, 2 और 3, और जवाहर शकरकंद- 145 और संकर किस्मों में एच- 41 और 42 आदि हैं। किसान भाई अपने क्षेत्र के अनुरूप किस्म का चयन करें।

ये भी पढ़े: हाइड्रोपोनिक खेती (Hydroponics Farming) क्या है? भारत में हाइड्रोपोनिक्स के लाभ

शकरकंद की फसल में खरपतवारों की रोकथाम

शकरकंद की फसल में खरपतवार की दिक्कत ज्यादा नहीं होती है। वैसे खरपतवारों की समस्याएं आरंभिक दौर में ही आती हैं, जब लताएं पूरे खेत में फैली हुई नहीं रहती। 

यदि शकरकंद की लताओं का फैलाव पूरे खेत में हो जाता हैं, तो खरपतवार का जमाव नहीं हो पाता है। यदि खेत में कुछ खरपतवार उगते हैं, तो मिट्टी चढ़ाते वक्त उखाड़ फेंकने चाहिऐं।

शकरकंद की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक

शकरकंद की खेती कैसे करें: शकरकंद की खेती में कार्बनिक खाद का उपयोग बहुत महत्वपूर्ण होता है, जिससे मृदा की उत्पादकता बेहतर और स्थिर बनी रहती है। 

शकरकंद की खेती कैसे करें, इस पर केन्द्रीय कंद अनुसंधान संस्थान की संस्तुति के अनुसार, खेत की पहली जुताई के दौरान 5 से 8 टन सड़ी हुई गोबर की खाद भूमि में मिला देनी चाहिए। 

रासायनिक उर्वरकों में प्रति हेक्टेयर 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 25 किलोग्राम फॉस्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश का उपयोग करना चाहिए। नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फॉस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा शुरू में लता लगाने के दौरान जड़ों में दी जानी चाहिए। 

शेष नाइट्रोजन को दो भागों में बांटकर, एक हिस्सा 15 दिन और दूसरा 45 दिन बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए। 

यदि अत्यधिक अम्लीय जमीन हो, तो प्रति हेक्टेयर 500 किलोग्राम चूने का उपयोग कंद विकास के लिए बेहतर रहता है। इसके अलावा, 25:15:10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मैगनीशियम सल्फेट, जिंक सल्फेट और बोरॉन का उपयोग करने पर कंद फटने की समस्या नहीं होती और समान आकार के कंद उगते हैं।

लगातार पूछे जाने वाले प्रश्न :

शकरकंद कौन से महीने में लगाई जाती है?

शकरकंद की खेती किसी भी मौसम में की जा सकती है. लेकिन अच्छी पैदावार पाने के लिए गर्मी और बारिश का मौसम सबसे अच्छा माना जाता है. जायद के मौसम में इसके पौधों की रोपाई जून और अगस्त महीने के बीच में की जा सकती है. इसके बाद इसकी फसल खरीफ की फसल के साथ तैयार हो जाती है

शकरकंद कैसे लगाया जाता है?

रोपाई के लिए तैयार होने से पहले स्लिप्स लगभग एक या दो महीने तक बीज की क्यारियों में उगते हैं। हालाँकि बड़ी कटिंग से अधिक उपज मिल सकती है, लेकिन किसान आमतौर पर 8-10 इंच (20-25 सेमी) लंबाई वाली स्लिप्स से उगाना पसंद करते हैं और उनमें 5-8 नोड्स और रोपाई के लिए पर्याप्त पत्तियाँ होती हैं

Spread the love