दिसंबर महीने में गेहूं की खेती में अधिक पैदावार के लिए ये करें: भारत में रबी सीजन के दौरान सबसे अधिक किसान गेहूं की खेती करते हैं। अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए किसानों को नई वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग करना चाहिए। हालांकि गेहूं की बुआई का सामान्य समय बीत चुका है, फिर भी किसान 25 दिसंबर तक पिछेती बुआई कर सकते हैं।
वर्तमान में समय पर बोई गई गेहूं की फसल बढ़वार की महत्वपूर्ण अवस्था में होती है। रबी सीजन में गेहूं की खेती (Gehu ki kheti) कर रहे किसानों को अधिक उपज प्राप्त करने के लिए कृषि विभाग और कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा निरंतर सलाह दी जाती है।
Bharat Ke Kisan के इस ब्लॉग में हम बतायेंगे गेहूं की खेती में अधिक पैदावार के लिए बुवाई करने के बेहतरीन तरीके।
देरी से फसल की बुआई करने वाले किसान इस बात का ध्यान रखें
आजकल प्रति इकाई भूमि से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए बहु-फसली या सघन कृषि प्रणालियों का पालन किया जा रहा है। कम अवधि वाली फसलें, जैसे मटर, तोरिया, और आलू, मुख्य फसलों के बीच में उगाई जाती हैं, जिससे गेहूं की समय पर बुआई नहीं हो पाती। इसी प्रकार, गन्ने की कटाई के बाद भी गेहूं की बुआई में देरी होती है।
आमतौर पर, किसान देर से बोई गई गेहूं की फसल में वही परंपरागत विधियाँ अपनाते हैं जो सामान्य गेहूं के लिए हैं, जिससे उत्पादन में कमी आती है। दिसंबर में तापमान कम होने से अंकुरण में कमी, शुरुआती विकास की धीमी गति, और फरवरी-मार्च में तापमान बढ़ने के कारण फसल का जल्दी पकना सामान्य है। इसलिए, देरी से बोए गए गेहूं से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए नई तकनीकों का उपयोग करना आवश्यक है।
किस समय करें गेहूं की पछेती किस्मों की बिजाई ?
अधिकांश किसान सामान्य गेहूं की प्रजातियों को पछेती बुआई में भी बोते हैं, जिससे उनकी उत्पादकता काफी कम हो जाती है। ऐसी स्थिति में अधिक पैदावार के लिए देरी से बुवाई के अनुकूल प्रजातियों का ही चयन करना चाहिए।
उन्नत प्रजातियों जैसे एच.आई.-1621, एच.डी.-3271, एच.डी.-3018, एच.डी.-3167, एच.डी.-3117, एच.डी.-3118, एच.डी.-3059, एच.डी.-3090, एच.डी.-2985, एच.डी.-2643, एच.डी.-2864, एच.डी.-2824, एच.डी.-2932, एच.डी.-2501, और WR 544 (पूसा गोल्ड) का उपयोग किया जा सकता है। यदि बीज का आकार बड़ा या छोटा है, तो उसी अनुसार बीज की मात्रा में कमी या वृद्धि की जा सकती है।
पछेती गेहूं की अधिक पैदावार के लिए बुआई का समय 10 दिसंबर तक, उत्तरी भारत में 25 दिसंबर तक और दक्षिणी भारत में 30 नवंबर तक करना उचित है। साथ ही, खरपतवार रहित, साफ और प्रमाणित बीजों का उपयोग करना चाहिए, और छोटे या कटे-फटे बीजों को अलग कर देना चाहिए। 1.0 किलोग्राम बीज को 2.5 ग्राम बाविस्टिन, 2 ग्राम कैप्टान या 2.5 ग्राम थीरम से उपचारित करना चाहिए यदि बीज पूर्व में उपचारित न हो।
गेहूं की खेती में बुवाई करने का तरीका
बुआई के लिए देसी हल या सीडड्रिल का उपयोग ही करना चाहिए। छिटकवां बुआई से बीज की अधिक खपत होती है, जमाव कमजोर होता है, निराई-गुड़ाई में कठिनाई आती है, और घने पौधों की वजह से उपज में कमी होती है, इसलिए इस विधि से बचना चाहिए।
आजकल सीडड्रिल बुआई काफी लोकप्रिय हो रही है, क्योंकि इससे बीज का जमाव बेहतर होता है और गहराई व पंक्तियों के बीच की दूरी नियंत्रित रहती है। विभिन्न परिस्थितियों में बुआई के लिए फर्टि-सीड ड्रिल, जीरो-टिल ड्रिल और शून्य फर्ब ड्रिल जैसी मशीनों का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है।
गेहूं की खेती में खाद और उर्वरक प्रबंधन
बुआई से पहले किसानों को मृदा में 5 से 10 टन गोबर की खाद अच्छी तरह मिलानी चाहिए, जिससे भूमि का तापमान और जल धारण क्षमता उचित बनी रहे। इससे पौधों का विकास और वृद्धि बेहतर होती है। प्रति हेक्टेयर पिछेती गेहूं के लिए 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फॉस्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है।
बुआई के दौरान, बालुई दोमट मृदा में 40 किलोग्राम फॉस्फेट और पोटाश, तथा भारी दोमट मृदा में 60 किलोग्राम नाइट्रोजन देना चाहिए। यदि गेहूं की फसल में जिंक सल्फेट की कमी है, तो 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से इसे बुआई के समय मिलाना चाहिए।
यदि इसके बाद भी जिंक सल्फेट की कमी दिखाई दे तो किसान भाई 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट (21%) का पर्णीय छिड़काव कर सकते हैं। पहली सिंचाई के समय, बालुई दोमट मृदा में 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और भारी दोमट मृदा में 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन की टॉप ड्रेसिंग करें।
दूसरी सिंचाई के दौरान बालुई दोमट मृदा में शेष 40 किलोग्राम नाइट्रोजन की आवश्यकता होगी। गंधक की कमी दूर करने के लिए, सिंगल सुपर फॉस्फेट या अमोनियम सल्फेट जैसे गंधक युक्त उर्वरकों का उपयोग करें। 200 लीटर पानी में मैंगनीज सल्फेट मिलाकर 2-3 दिन पहले इसका छिड़काव करें।
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गेहूं की खेती में सिंचाई करने का उचित समय
गेहूं की फसल को पूरे विकास काल में लगभग 35 से 40 सेंटीमीटर पानी की आवश्यकता होती है। जब गेहूं की छत्रक (क्राउन) जड़ें और बालियां निकलती हैं, तब सिंचाई करना अत्यंत आवश्यक होता है, क्योंकि इसके बिना फसल की उपज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
गेहूं के लिए सामान्यत: चार से छह सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। गेहूं की बुआई के 20 से 25 दिनों के बाद पहली सिंचाई 5 से 6 सेंटीमीटर पानी के साथ की जानी चाहिए, और फिर 40 से 45 दिनों के बीच ताजमूल (CRI) अवस्था में दूसरी सिंचाई करनी चाहिए।
निष्कर्ष
दिसंबर महीने में गेहूं की अधिक पैदावार के लिए किसानों को नई वैज्ञानिक तकनीकों और उन्नत किस्मों का उपयोग करना अत्यंत आवश्यक है। हालांकि गेहूं की बुआई का सामान्य समय बीत चुका है, फिर भी देर से बुआई करने वाले किसान भी यदि सही प्रजातियों का चयन करें और समय पर सिंचाई, खाद, और उर्वरक प्रबंधन के उपायों को अपनाएं, तो वे अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं।
इसके अलावा, बुआई का सही तरीका और उन्नत मशीनों का इस्तेमाल जैसे सीडड्रिल और फर्टि-सीड ड्रिल से बीज की गहराई और जमाव बेहतर होता है, जिससे पौधों की वृद्धि में सहारा मिलता है। साथ ही, सही सिंचाई व्यवस्था और खाद का प्रयोग फसल के स्वास्थ्य और वृद्धि को बढ़ावा देते हैं।
किसानों को कृषि विभाग और विशेषज्ञों द्वारा दी गई सलाहों का पालन करके सफल गेहूं की फसल से बेहतर उत्पादन प्राप्त करने में सफलता मिल सकती है। इस प्रकार, नई तकनीकों और सही कृषि विधियों के द्वारा दिसंबर में गेहूं की खेती से अधिक लाभ कमाया जा सकता है।
लगातार पूछे जाने वाले प्रश्न | Frequently Asked Questions
दिसंबर महीने में कौन से गेहूं की बुवाई करें?
किसान भाई पछेती गेहूं के लिए अधिक उपज देने वाले बीज एवं उन्नत तकनीक का प्रयोग कर कम दिनों में अच्छी उपज प्राप्त कर सकते है। पछेती गेहूं की बुआई 1 दिसंबर से 25 दिसंबर तक होती है। उस दौरान किसानों को 105 से 115 दिन की अवधि का गेहूं का बीज खरीदना चाहिए। डीबीडब्ल्यू-173 किस्म की बुआई
गेहूं की पैदावार बढ़ाने के लिए क्या डालें?
गेहूं के लिए अनुशंसित यारा उर्वरक 27% N + 9% SO3 – सभी फसलों पर उपयोग के लिए दानेदार समान यौगिक नाइट्रेट आधारित नाइट्रोजन और सल्फर उर्वरक। 24% N + 15% SO3 – सभी फसलों, विशेषकर उच्च सल्फर आवश्यकता वाली फसलों पर उपयोग के लिए एकसमान यौगिक नाइट्रेट आधारित नाइट्रोजन और सल्फर उर्वरक।