अरहर की खेती किसानों के लिए हमेशा से फायदेमंद साबित होती आई है, लेकिन इसके भाव में बाजार के उतार-चढ़ाव का प्रभाव देखा जाता है। एक बड़ी चुनौती यह है कि अरहर की फसल तैयार होने में अधिक समय लेती है, जिससे किसान दूसरी फसलों की बुवाई नहीं कर पाते।
हालांकि, वैज्ञानिकों ने ऐसी अरहर की किस्में विकसित की हैं जो कम समय में पककर तैयार हो जाती हैं और बेहतर उपज भी देती हैं। इन नई किस्मों से किसानों को अधिक लाभ मिलने की संभावना है, क्योंकि इससे उन्हें दूसरी फसलों की बुवाई का अवसर भी मिल सकता है।
अरहर की खेती (Arhar Ki Kheti) में कुछ खास सावधानियों की जरूरत होती है। बीजोपचार एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसे फसल की रोपाई से पहले करना चाहिए ताकि बीजों की गुणवत्ता और फसल का स्वास्थ्य बेहतर रहे। आमतौर पर अरहर की बुवाई जून के महीने में की जाती है।
आइए जानते हैं, कम समय में तैयार होने वाली अरहर की उन्नत किस्मों और बीजोपचार की विधि के बारे में अधिक जानकारी।
अरहर की खेती की इन तीन किस्मों का उत्पादन कर अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं किसान
अरहर की पूसा 16 किस्म
पूसा 16 अरहर की एक बेहतरीन किस्म है जो जल्दी पककर तैयार हो जाती है। इसकी फसल की अवधि केवल 120 दिनों की होती है। इस किस्म के पौधे छोटे आकार के होते हैं, जिनकी ऊँचाई लगभग 95 से 120 सेंटीमीटर तक होती है। यह किस्म औसतन 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक का उत्पादन देने में सक्षम है, जो इसे कम समय में अधिक उपज देने वाली फसलों में शामिल करता है।
अरहर की आईपीए 203 किस्म
अरहर की आईपीए 203 किस्म की खासियत यह है कि यह रोग प्रतिरोधी है, जिससे फसल पर बीमारियों का असर नहीं होता। इस किस्म की बुवाई से किसान अपनी फसल को कई प्रकार के रोगों से बचा सकते हैं और बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। इसकी औसत उपज लगभग 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
यह किस्म 150 दिनों में पूरी तरह पककर तैयार हो जाती है, जबकि अन्य पारंपरिक किस्मों को 220 से 240 दिन का समय लग सकता है। इस कारण, आईपीए 203 कम समय में अधिक उपज देने के लिए एक बेहतर विकल्प साबित होती है।
किसान इस प्रकार बीज उपचार करें
यह जानना महत्वपूर्ण है कि किसी भी फसल की खेती से पहले बीज उपचार करना बहुत जरूरी होता है। बीज उपचार से फसल पर रोगों का असर कम हो जाता है और स्वस्थ पौधों का विकास सुनिश्चित होता है।
बीज उपचार के लिए कार्बेंडाजिम नामक दवा का उपयोग कर सकते हैं। इसके लिए दो ग्राम कार्बेंडाजिम को प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से मिलाएं और इस मिश्रण को थोड़े पानी के साथ मिलाकर बीजों को छायादार स्थान पर चार घंटे के लिए रखें। इसके बाद, इन बीजों की बुवाई करें। इस प्रक्रिया से बीजों पर रोगों का आक्रमण होने की संभावना कम हो जाती है और फसल की अच्छी वृद्धि होती है।
किसान इस विधि से करें अरहर की खेती
आमतौर पर किसान अरहर की खेती में छींटा विधि का उपयोग करते हैं, जिससे कुछ स्थानों पर अधिक बीज पड़ जाते हैं और कुछ जगहों पर कम। इस असमान बुवाई के कारण फसल में घनत्व का असंतुलन होता है, जिससे पौधों को सही मात्रा में धूप, पानी, और पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं।
इसके परिणामस्वरूप, फसल की उपज में काफी कमी आ जाती है। बेहतर उत्पादन के लिए, किसानों को बीजों को 20 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाना चाहिए। इस विधि से बीज की खपत भी कम होती है और फसल का विकास भी समान रूप से होता है।
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निष्कर्ष
अरहर की खेती किसानों के लिए हमेशा एक लाभदायक विकल्प रही है, खासकर जब वे कम समय में पकने वाली किस्मों का चयन करते हैं। वैज्ञानिकों द्वारा विकसित नई किस्में जैसे पूसा 16 और आईपीए 203 न केवल कम समय में पककर तैयार होती हैं, बल्कि उनकी उपज भी बेहतर होती है, जिससे किसानों को अधिक मुनाफा हो सकता है।
इसके अलावा, बीज उपचार और सही बुवाई विधि जैसे उपाय अपनाकर फसल को रोगों से बचाया जा सकता है और उत्पादन में सुधार किया जा सकता है।
बीज उपचार और व्यवस्थित दूरी पर बुवाई करने से न केवल फसल की गुणवत्ता बढ़ती है, बल्कि इसमें रोगों का असर भी कम होता है। अरहर की खेती में इन आधुनिक तरीकों और उन्नत किस्मों को अपनाने से किसानों को न केवल उत्पादन में वृद्धि होगी, बल्कि अन्य फसलों की बुवाई का भी अवसर मिलेगा, जिससे उनकी आमदनी और बढ़ सकती है।
समग्र रूप से, सही किस्म का चयन, बीज उपचार और व्यवस्थित खेती के तरीकों को अपनाकर किसान अरहर की खेती से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।