केंचुआ खेती में कैसे मदद कर सकते हैं: केंचुआ खेती के लिए बेहद लाभकारी होते हैं, क्योंकि ये मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते हैं। केंचुएं जैविक पदार्थों को तोड़कर मिट्टी में पोषक तत्वों को घुलनशील बनाते हैं, जिससे पौधों को आवश्यक पोषण मिलता है।
इसके साथ ही, केंचुएं मिट्टी की संरचना को सुधारते हैं, जल निकासी को बढ़ाते हैं और मिट्टी में नमी को बनाए रखने में मदद करते हैं। केंचुआ खाद (वर्मी कंपोस्ट) का उपयोग करके किसान रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम कर सकते हैं, जिससे पर्यावरण को भी फायदा होता है।
प्रकृति ने हर जीव को हमारे जीवन में किसी न किसी रूप में उपयोगी बनाया है, और इनमें से केंचुआ खेती के लिए एक वरदान साबित हो सकता है। हालांकि, कीटनाशकों के बढ़ते इस्तेमाल के कारण अब केंचुए जमीन में कम दिखाई देते हैं, और किसानों को इन्हें 300 से 500 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से खरीदना पड़ता है।
केंचुए गोबर और फसल अवशेषों से बनी खाद तैयार करते हैं। ये खेत में पड़ी जैविक सामग्री जैसे पेड़-पौधों के अवशेष और अन्य कार्बनिक पदार्थों को खाकर पौधों के लिए उपयुक्त देशी खाद में बदल देते हैं। जहां केंचुए प्रचुर मात्रा में होते हैं, वहां वे खेत की जुताई का काम भी प्राकृतिक रूप से कर देते हैं, जिससे मिट्टी में हवा और पानी का प्रवाह बेहतर होता है।
केंचुए अपनी आवश्यकता का केवल 10 प्रतिशत सामग्री ही उपभोग करते हैं, जबकि बाकी 90 प्रतिशत को बेहतरीन खाद के रूप में मिट्टी को लौटा देते हैं। केंचुआ खाद का पीएच स्तर 6.8 होता है, और इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम और कई सूक्ष्म पोषक तत्व मौजूद होते हैं।
वर्मी कंपोस्ट में गोबर की खाद की तुलना में 5 गुना अधिक नाइट्रोजन, 8 गुना अधिक फास्फोरस, 11 गुना अधिक पोटाश, और 3 गुना अधिक मैग्नीशियम पाया जाता है, जो इसे पौधों के लिए बेहद पोषक बनाता है।
खेती के लिए वरदान हैं केंचुआ
विशेषज्ञों का मानना है कि केंचुए हर साल 2 से 250 टन मिट्टी को उलट-पलट कर सकते हैं, जिससे भूमि की सतह में प्रतिवर्ष 1 से 5 मिमी की वृद्धि होती है। उनके सक्रिय होने से मिट्टी में जैविक क्रियाएं, ह्यूमस का निर्माण और नाइट्रोजन स्थिरीकरण की प्रक्रियाएं तेज हो जाती हैं।
केंचुओं की गतिविधियां मिट्टी की जल धारण क्षमता को बढ़ाने के साथ-साथ ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को कम करने में भी सहायक होती हैं, क्योंकि वे जमीन के तापमान को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।
केंचुए सूखी मिट्टी या सूखे और ताजे कचरे को खाना पसंद नहीं करते, इसलिए केंचुआ खाद बनाने के लिए कचरे में 30 से 40 प्रतिशत नमी बनाए रखना और कचरे का अर्द्ध-सड़ा होना बहुत जरूरी है।

वर्मी कम्पोस्ट हैं खेती के लिए काला सोना
भले ही हम कितने भी आधुनिक हो जाएं, लेकिन कुछ परंपराएं आज भी हमें प्रकृति और पर्यावरण से जोड़े रखती हैं। इन्हीं परंपराओं में से एक है विवाह के समय घूरा पूजने की रस्म। असल में, घूरा उस स्थान को कहा जाता है जहां घरों से निकलने वाला कूड़ा-कचरा इकट्ठा किया जाता है, और हिन्दू समाज में इसे जीवन में कम से कम एक बार विवाह के दौरान पूजा जाता है।
इस घूरे से प्राप्त होने वाली खाद से कृषि भूमि को कार्बनिक खाद के रूप में महत्वपूर्ण पोषण मिलता था। हालांकि, बदलते समय के साथ अब केंचुआ खाद का उपयोग बढ़ रहा है, जो पारंपरिक खाद की तुलना में अधिक प्रभावी होती है। इसे वैज्ञानिक विधियों के अनुसार तैयार किया जाता है।
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केंचुआ की खाद (kechua ki khad) कैसे तैयार करें?
इसके लिए ईंटों से बनी पक्की क्यारी तैयार करनी होती है, जिसकी लंबाई 3 मीटर, चौड़ाई 1 मीटर और ऊंचाई 30 से 50 सेंटीमीटर होनी चाहिए। केंचुओं के प्रजनन के लिए तेज धूप और बारिश से बचाना जरूरी होता है, इसलिए क्यारी को छप्पर और हरे नेट से ढकी टट्टीयों से ढकना चाहिए ताकि पर्याप्त अंधेरा बना रहे।
क्यारियों को भरने के लिए पेड़-पौधों की पत्तियां, घास, सब्जी और फलों के छिलके, गोबर जैसे अपघटनशील कार्बनिक पदार्थों का चुनाव किया जाता है। इन पदार्थों को पहले 15 से 20 दिनों तक ढेर बनाकर सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है, जिसमें समय-समय पर पानी छिड़कते हैं। जब कचरा अधगले रूप में आ जाए, तो इसे क्यारी में भरकर केंचुए छोड़ दिए जाते हैं और क्यारी को गीली बोरियों से ढक दिया जाता है। इस प्रक्रिया से एक टन कचरे से 0.6 से 0.7 टन केंचुआ खाद प्राप्त होती है।
निष्कर्ष
केंचुए खेती के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने में मदद करते हैं, क्योंकि ये जैविक पदार्थों को घुलनशील पोषक तत्वों में बदलते हैं, जो पौधों के लिए आवश्यक होते हैं।
इनके मौजूद होने से मिट्टी की संरचना में सुधार होता है, जल निकासी बढ़ती है, और मिट्टी में नमी को बनाए रखने में भी मदद मिलती है, जिससे पौधों की बेहतर वृद्धि होती है।
केंचुआ खाद (वर्मी कंपोस्ट) का उपयोग करके किसान रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम कर सकते हैं, जो पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है।